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________________ श्री सोमदेव विरचित उपासंकाध्ययन धर्मात्किलैष जन्तुर्भवति सुखी जगति स च पुनर्धर्मः । किरूपः किंभेदः किमुपायः किंफलश्च जायेत ॥१॥ यस्मादभ्युदयः पुंसां निःश्रेयसफलाश्रयः । वदन्ति विदिताम्नायास्तं धर्म धर्मसूरयः ॥२॥ स प्रवृत्तिनिवृत्त्यात्मा गृहस्थेतरगोचरः । प्रवृत्तिर्मुक्तिहेती स्यानिवृत्तिर्भवकारणात् ॥३॥ सम्यक्त्वज्ञानचारित्रत्रयं मोक्षस्य कारणम् । संसारस्य च मीमांस्यं मिथ्यात्वादिचतुष्टयम् ॥४॥ सम्यक्त्वं भावनामाहुयुक्तियुक्तेषु वस्तुषु । मोहसंदेहविभ्रान्तिवर्जितं ज्ञानमुच्यते ॥५॥ कर्मादाननिमित्तायाः क्रियायाः परमं शमम् । चारित्रोचितचातुर्याश्चारुचारित्रमूचिरे ॥६॥ धर्मविषयक जिज्ञासा धर्मसे यह प्राणी जगत्में सुखी होता है । उस धर्मका क्या स्वरूप है ? कितने भेद हैं ? तथा उसका क्या उपाय और क्या फल है ॥१॥ धर्मका स्वरूप और भेद जिससे मनुष्यों को ऐसे अभ्युदयकी प्राप्ति होती है, जिसका फल मोक्ष है उसे आम्नायके ज्ञाता धर्माचार्य धर्म कहते हैं ॥२॥ वह धर्म प्रवृत्ति और निवृत्तिरूप है। मोक्षके कारणोंमें लगनेको प्रवृत्ति और संसारके कारणोंसे बचनेको निवृत्ति कहते हैं। वह धर्म गृहस्थ धर्म और मुनि धर्मके भेदसे दो प्रकारका है ॥३॥ संसार और मोक्षके कारणोंका स्वरूप अब प्रश्न यह है कि मुक्तिका कारण क्या है और संसारका कारण क्या है ? तथा गृहस्थोंका धर्म क्या है और मुनियोंका धर्म क्या है ? - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र मोक्षके कारण हैं । तथा मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय और योग संसारके कारण हैं ॥४॥ युक्तियुक्त वस्तुओंमें दृढ़ आस्थाका होना सम्यग्दर्शन है । और मोह, सन्देह तथा भ्रमसे रहित ज्ञानका होना सम्यग्ज्ञान है ॥५॥ जिन कामोंके करनेसे १. 'यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः ।'-वशे० द० १-२। यतोऽभ्युदयनिःश्रेयसार्थसिद्धिः सुनिश्चिता । स धर्मः।-महापुराण ५-२० । २. संप्र-ज०, २० । ३. 'सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥११॥ -सत्त्वा० सू० अ० १। ४. दर्शनं भावनां प्राहुः प्रमापूतेषु वस्तुषु । भ्रान्ति-सन्देह-संमोह-दुरितं वेदनं हि तत् ॥२१॥-प्रबोधसार । ५. अज्ञानं मोहः । इदं तत्त्वमिदं वा तत्त्वमिति चलन्ती प्रतीतिः संदेहः । अतत्त्वे तत्त्वव्यवसायो भ्रान्तिः । ६. 'कर्मादाननिमित्तक्रियोपरमः सम्यक्चारित्रम्'-सर्वा०सि०,१-१।।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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