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________________ ३४४ षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, परिशिष्ट - ४ संकेत-विवरण न्यायवा० ता० टी० : न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका, प्रश० भा, व्यो० : प्रशस्तपादभाप्य व्योगवतीटीका, न्यायसारः : न्यायसारः पात० महाभा० : प्रशस्तपादभाप्यकन्दली टीका न्यायावता० : न्यायावतारः, वृहत्कल्प० मलय० : वृहत्कल्पभाप्यम्, वृ० सर्वज्ञसि० : वृहत्सर्वज्ञसिद्धिः (लघीययत्रयादि संग्रहान्तर्गतः), न्यायभा० : न्यायभाप्यम् न्यायवि० वि० : न्यायविनिश्चयविवरण,प्रथमभाग, बृहदा० : वृहदारण्यकोपनिपत्, न्यायवि० : न्यायविन्दुः न्याय वि० टी० : न्यायविन्दुटीका ब्रह्मसू० शां० भा० : ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम्, ब्रह्मसू० शां० भा० रत्नप्रभा : ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम् बोधिचर्या० पं० पृ० : वोधिचर्यावतारः. न्यायसू० .: न्यायसूत्रम् न्यायभा० : न्यायभाप्य, भग० : भगवतीसूत्रम्, प्रभाकरवि० : प्रभाकर विजय, भगवद्गी० प्रकरण पं० : प्रकरणपंजिका, : भगवद्गीता, : गनुस्मृति, मनु० प्रज्ञा० मलय० : प्रज्ञापनासूत्रगलयगिरिटीका, महाभा० : गहाभारतम्, प्र० वार्तिकालं० : प्रगाणवार्तिकालंकारः, प्र० वा० स्ववृ० टी०: प्रगाणवार्तिकस्ववृत्तिटीका. माध्यमिक० वृ० : माध्यमिकवृत्तिः, मी० श्लो० : मीमांसाश्लोकवार्तिकम्, प्रमाणवा० : प्रगाणवार्तिकग, मी० श्लो० उपमान०: गीगांसाश्लोकवार्तिकग प्रमाणसमु० : प्रगाणसुगञ्चयः मी० श्लो० प्रत्यक्षसू०: गीगांसाश्लोकवार्तिकग, प्रमाणप० : प्रगाणपरीक्षा, मुण्डक० : गुण्डकोपनिपत्, प्रमाणमी० : प्रगाणगीगांसा, मूलाचा० : गूलाचार, प्रमाणसं० : प्रगाणसंग्रह, मैत्रा० : मैत्रायण्युपनिषद्, प्रमेयक० : प्रमेयकगलगार्तण्ड, यश० : यशस्तिलकर, प्रमेयरत्नमा० : प्रगेयरत्नगाला, युक्तयनुशा० : युक्तयनुशासन, प्रव० टी० :: प्रवचनसारटीका (जयसेनीया) योगद० व्यासभा० : योगदर्शनव्यासभाप्या, प्रश० भा०, कन्द : प्रशस्तपादभाप्यकिरणावली योगभा० : योगदर्शनव्यासभाप्यग प्रश० किर० : प्रशस्तपादभाष्यकिरणावली टीका, योगभा० तत्त्ववैशा०: योगभाप्यस्य तत्त्ववैशारदीटीका,
SR No.022413
Book Titleshaddarshan Samucchay Satik Sanuwad part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size40 MB
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