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________________ षड्दर्शन समुश्चय भाग - १, परिशिष्ट - ४ संकेत-विवरण ३४३ - 7 - परिशिष्ट - ४ ।। संकेत-विवरणम् ।। अनुयोग० :: अनुयोगद्वारसूत्रम् अनेकान्तवादप्र० : अनेकान्तवादप्रवेशः, त० श्लोक० तत्त्वसं० : तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकम्, : तत्त्वसंग्रह अनेकान्तजयप० : अनेकान्तजयपताका, प्र० द्वि० भा, तत्त्वसं०प० : तत्त्वसंग्रह पञ्जिका अमर० : अगरकोश, तत्त्वोप० : तत्त्वोपप्लवसिंह अयोगव्य० : अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशतिका, तन्त्ररह० : तन्त्ररहस्यम्, अष्टश०, अष्टसह० : अष्टशती (अष्टसहयन्तर्गत), तन्त्रवा० : तन्त्रवार्तिकम् आप्तप० : आप्त परीक्षा, ति०प० : तिलोयपण्णती, आप्तमी० तैत्ति० : तैत्तिरीयसंहिता, : आप्तगीमांसा (अष्टसहस्रयन्तर्गत), : आवश्यकनियुक्ति मलयगिरिटीका, आ० मलय० द्रव्यसं० : द्रव्यसंग्रह, पुरुषसू० सायणभा०: [पुरुपसूक्त सायणभाप्ययुक्त) धवला० : धवला टीका, काललो० : काललोकप्रकाशः, धर्मसं० : धर्मसंग्रहिणीवृत्तिः, केवलिभु० : केवलिभुक्तिप्रकरणम्, नन्दि० मलय० नयवि० : नन्दिसूत्रगलयगिरिटीका, : नयविवेकः, क्षणभ० सि० : क्षणभङ्गसिद्धिः, न्यायकुमु० : न्यायकुगुदचन्द्र, गच्छा०वृ० गो० कर्म :: गच्छाचारप्रकीर्णकवृत्तिः, : गोग्गटसार कर्मकाण्ड, न्यायकुसु : न्यायकुसुगाञ्जलि चरक सं० : चरक संहिता, न्यायकलि० : न्यायकलिका चतुःश० : चतुःशतकम्, : तत्त्वप्रदीपिका चित्सुखी, न्यायदी० : न्यादीपिका, चित्सु० जैनतर्कभा० न्यायमं० : न्यायगञ्जरी, . : जैनतर्कभापा . जैनतर्कवा० : जैतर्कवार्तिकम् न्यायमं० प्रमाण० : न्यायगञ्जरी प्रमाणप्रकरणम्, न्यायमं० प्रमे० : न्यायगञ्जरीप्रमेयप्रकरणम्, त०वा० : तत्त्वार्थवार्तिकम्, त०सू० : तत्त्वार्थसूत्र (सर्वार्थसिद्धयन्तर्गत) न्यायमुक्ता०दिन० : न्यायगुक्तावली दिनकरी, न्यायली० : न्यायलीलावती त० सू०भा० : (तत्त्वार्थाधिगम) तत्त्वार्थसत्रभाष्य, न्यायवा० : न्यायवार्तिकम्
SR No.022413
Book Titleshaddarshan Samucchay Satik Sanuwad part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size40 MB
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