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________________ [ ५० ] अर्थ-शब्द के विकार से उत्पन्न हुआ जैसा शास्त्र भाषा सूत्रों में जिनेन्द्रदेव ने कहा है, श्रीभद्रबाहु के शिष्य विशाखाचार्य के द्वारा जाना हुआ वैसा ही अर्थ हमने कहा है, अपनी बुद्धि से कल्पना करके नहीं कहा है ॥६॥ गाथा-बारसअंगवियाणं चउदसपुवंगविउलवित्थरणं। सुयणाणिभद्दबाहू गमयगुरू भयवो जयओ ॥६२।। छाया-द्वादशांगविज्ञानः चतुर्दशपूर्वांगविपुलविस्तरणः । श्रुतज्ञानिभद्रबाहुः गमकगुरूः भगवान् जयतु ॥६२।। अर्थ-द्वादशांग के जानने वाले, १४ पूर्वो के बड़े विस्तार को समझने वाले, सूत्र के अर्थ को यथार्थ रूप से जानने वालों में प्रधान, श्रुतकेवली भगवान् भद्रबाहु जयवन्त हो ॥६२॥
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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