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________________ [ २५ ] गाथा - दंसण वय सामाइय पोसह सचित्त रायभत्ते य । बंभारंभ परिग्गह अमरण उद्दिट्ठ देसविरदो य ।। २२ ।। छाया - दर्शनं व्रतं सामायिकं प्रोषधं सचित्तं रात्रिभुक्तिश्च । ब्रह्म आरंभः परिग्रहः अनुमतिः उद्दिष्टः देशविरतश्च ।। २२ ।। अर्थ — दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरंभत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग, उद्दिष्टत्याग इस प्रकार ये देशविरत के ११ भेद हैं । इन्हें ११ प्रतिमा भी कहते हैं ॥ २२ ॥ भावार्थ - अब ग्यारह प्रतिमाओं का भिन्न २ स्वरूप संक्षेप से कहते हैं: (४) अष्टमी चतुर्दशी (१) शुद्ध सम्यग्दर्शन सहित अष्टमूल गुणों का धारण करना सो दर्शनप्रतिमा है । (२) अतीचार रहित ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत और ४ शिक्षा. व्रतों को पालना सो व्रतप्रतिमा है । (३) तीनों का विधिपूर्वक निरतिचार सामायिक करना सो सामायिक प्रतिमा है । आदि पर्व दिनों में कषायादि का त्याग करना सो प्रोषत्र पवास प्रतिमा है । (५) कच्चे फल फूल वनस्पति आदि के खाने का त्याग करना सो सचित्तत्याग प्रतिमा है । (६) रात्रि में सब प्रकार के आहार का त्याग करना सो रात्रिभोजन त्याग प्रतिमा है । (७) मन वचन काय से स्त्रीमात्र का त्याग करना सो ब्रह्मचर्य प्रतिमा है । ( 5 ) खेतो व्यापार आदि आरंभ क्रियाओं का त्याग करना सो आरंभत्याग प्रतिमा है । (६) धनधान्यादि परिग्रह से विरक्त होना सो परिग्रहत्याग प्रतिमा है । (१०) खेती व्यापारादि तथा विवाहादि लौकिक कार्यों में अनुमति न देना सो अनुमतित्याग प्रतिमा है । (११) वन में तप करते हुए रहना, भिक्षावृत्ति से आहार लेना, और खण्डवस्त्र धारण करना सो उद्दित्याग प्रतिमा है । गाथा - पंचे वरणुव्वयाइं गुणव्वयाइं हवंति तह तिरिए । सिक्खावय चत्तारिय संजमचरणं च सायारं ॥ २३ ॥ छाया - पंचैव अणुव्रतानि गुणव्रतानिभवन्ति तथा त्रीणि । शिक्षाव्रतानि चत्वारि संयमचरणं च सागारं ।। २३ ।। अर्थ - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इस तरह यह १२ प्रकार का सागार अर्थात् श्रावकों का संयमचरण चारित्र कहलाता है ।। २३ ।।
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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