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________________ [१५] छाया-यथा सलिलेन न लिप्यते कमलिनीपत्रं स्वभावप्रकृत्या । तथा भावेन न लिप्यते कषायविषयैः सत्पुरुषः ॥१५४॥ अर्थ-जैसे कमलिनी का पत्र स्वभाव से ही जल के द्वारा नहीं छुआ जाता है, वैसे ही सम्यग्दृष्टी पुरुष उत्तम भावों द्वारा क्रोधादि कषायों और इन्द्रिय विषयों से लिप्त नहीं होता है ॥ १५४ ॥ गाथा-तेवि य भणामिहं जे सयलकलासीलसंजमगुणेहिं । बहुदोसाणावासो सुमलिणचित्तो ण सावयसमो सो ॥१५॥ छाया-तानपि च भणामि ये सकलकलाशीलसंयमगुणैः । बहु दोषाणामावासः सुमलिनचित्तः न श्रावकसमः सः ॥ १५५ ॥ अर्थ-श्रीकुन्दकुन्दाचार्य कहते हैं कि जो सम्पूर्ण कलाओं और शील, संयम आदि गुणों सहित हैं उन सम्यग्दृष्टि पुरुषों को हम मुनि कहते हैं। तथा जो अनेक दोषों का घर है, अत्यन्त मलिन चित्त है, ऐसा मिथ्यादृष्टि पुरुष श्रावक के समान भी नहीं है, किन्तु वास्तव में मुनि वेषधारी बहुरूपिया है ॥ १५५ ॥ गाथा-ते धीरवीरपुरिसा खमदमखग्गेण विष्फुरतेण । दुज्जयपबलबलुद्धरकसायभड णिज्जिया जेहिं ॥१५६।। छाया-ते धीरवीरपुरुषाः क्षमादमखड्गेण विस्फुरता । दुर्जयप्रबलबलोद्धरकषायभटाः निर्जिता यैः ॥१५६।। अर्थ-वे पुरुष धीर वीर हैं जिन्होंने चमकते हुए क्षमा और इन्द्रियों के दमनरूप तलवार से अत्यन्त कठिनता से जीतने योग्य बलवान् और बल से उन्मत्त कषायरूपी योद्धाओं को जीत लिया है ॥ १५६॥. . गाथा-धण्णा ते भयवंता दंसणणाणग्गपवरहत्थेहिं । विसयमयरहरपडिया भविया उत्तारिया जेहिं ॥१५७।। छाया-धन्याः ते भगवन्तः दर्शनज्ञानाग्रप्रवरहस्तैः। विषयमकरधरपतिताः भव्याः उत्तारिताः यैः ॥१५॥ अर्थ-वे पुरुष पुण्यवान् और आदर के योग्य हैं जिन्होंने दर्शन ज्ञानरूपी मुख्य हाथोंसे विषयरूपी समुद्र में डूबे हुए भव्य जीवोंको पार कर दिया है ॥१५७।।
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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