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________________ जहां तक मेरा ख्याल है, जैन वाङ्मयमें तार्किक पद्धतिके ( जिसे दार्शनिक या न्याय पदति भी कह सकते हैं ) प्रारम्भिक बीज भगवान् उमास्वाति जी (विक्रमको तीसरी सदी)के 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्रमें' मिलते हैं। ये महापुरुष आगमिक होते हुए भी इन्हेांने तत्वसमर्थनमें तार्किक पद्धतिका नया सिलसिला जैन साहित्यमें कायम किया, और वह उत्तरोत्तर बढता ही चला । ये आचार्य श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों जैन फिरकोंमें समान रूपसे मान्य हैं । तार्किक पद्धतिके श्री उमास्वातिजीके इस स्फुलिंगको अधिक प्रकाशमान बनानेका यश महातार्किक श्रीसिद्धसेन दिवाकरको मिलता है । इसके बाद तो तर्कप्रधान जैन वाङ्मयमें एक बाढसी आ गई, और दोनों जैन फिरकोंके अनेक स्वनामधन्य प्रकाण्ड विद्वान् जैनाचार्य उसे समय समय पर नवपल्लवित बनाते रहें। एसे प्रातःस्मरणीय आचार्यों मेंसे कुछ ये हैं-देवनन्दि, मल्लवादी, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सिंहगणि, स्वामो समन्तभद्र, याकिनीमहत्तगधर्मसू नु श्री हरिभद्रसूरे, अकलंकदेव, विद्यानंद, सिद्धर्षि, देवसेन, माणिक्यनंदी, तर्कपंचानन अभयदेवसूरि, प्रभाचन्द्र, वादिराजसूरि, वसुनन्दो, सोमदेव, जिनेश्वरसूरि, चन्द्रप्रभमूरि, मुनिचन्द्रसूरि, वादी देवसूरे, कलि कालसर्वज्ञ हेमचन्द्र पूरि, मलयगिरि, रत्नप्रभसूरे, अभयतिलक, मल्लिषेणसूरि, राजशेखरसूरि, उपाध्याय विनयविजय, महोपाध्याय यशोविजयजी, यशस्वत्सागर इत्यादि । प्रस्तुत ग्रन्थके निर्माता : महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी प्रस्तुत ग्रन्थ-जैन तर्कभाषा के निर्माता महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज जैन तार्किकोंकी परम्पराके एक तेजस्वी सितारे थे । इतना ही क्यों ? जैन वाङ्मयकी उन्हेांने जो सर्वतोमुखी सेवा की है और जिस अगाध पाण्डित्यका उनके साहित्यमें दर्शन होता है उससे उन्हें हम बेखटके एक समर्थ जैन ज्योतिर्धर कह सकते हैं । वे न केवल तार्किक हो थे, प्रत्युत आध्यात्मिक, आगमिक, वैयाकरणीय, अलंकार व छन्दःशास्त्रके ज्ञाता और एक रसज्ञ कवि भी थे । गुजराती, मारवाडो भाषाकी उनकी छोटी मोटी कवितायें आज भी आदरसे गायी जाती हैं। ये कवितायें सामान्य या अल्पार्थक अलंकारोंसे मंडित न हो कर गभीर अर्थको वहन करनेवाली, कर्णमनोहर और सुगेय हैं, यह इनके कवित्वको विशिष्टता है । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, मारवाडी वगैन्ह भाषाओमें बनी हुई इनकी छोटीमोटी अनेक कृतियोंके देखते हुए इन्हें हम विना संकोच 'प्रबन्धशतनिर्माता' कह सकते हैं । ___इन महापुरुषका जन्म गुजरातमें अणहिलबाड पाटणके पास कनोड गांवमें वैश्यजातिमें, वि. सं. १६७५ से १६८० के बीच, होनेका अनुमान है । इनके पिताका नाम नारायण और माताका नाम शोभा दे था। इनका नाम था जशवन्त । वि. सं. १६८८ में इन्होंने, अपने छोटे भाई पद्मसिंहके साथ, मुनि श्री नयविजयजीके पास दीक्षा ली। इनके नाम क्रमसे यशोविजय
SR No.022410
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherJashwantlal Girdharlal Shah
Publication Year1951
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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