SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लब्धिसारः। पढमहिदिअद्धंते लोहस्स य होदि दिणुपुधत्तं तु । वस्ससहस्सपुधत्तं सेसाणं होदि ठिदिवंधो ॥ २७९ ॥ प्रथमस्थित्याते लोभस्य च भवति दिनपृथक्त्वं तु । । वर्षसहस्रपृथक्त्वं शेषाणां भवति स्थितिबंधः ॥ २७९ ॥ अर्थ-माया उपशमनके वाद अनिवृत्तिकरणके अन्तसमयतक बादर लोभका वेदनकालके प्रथम अन्तसमयमें स्थितिबन्ध संज्वलन लोभका तो पृथक्त्व दिन प्रमाण और अन्यका पूर्वकथितक्रमसे पृथक्तव हजार वर्षप्रमाण है ॥ २७९ ॥ विदियद्धे लोभावरफड्ढयहेट्ठा करेदि रसकिदि । इगिफड्ढयवग्गणगद संखाणमणंतभागमिदं ॥ २८०॥ द्वितीयाधै लोभावरस्पर्धकाधस्तनां करोति रसकृष्टिम् । एकस्पर्धकवर्गणागतं संख्यानामनंतभागमिदम् ॥ २८० ॥ अर्थ-संज्वलनलोभकी प्रथमस्थितिके प्रथम आधेको विताकर द्वितीय अर्धके प्रथमसमयमें संज्वलन लोभके अनुभागसत्त्वमें जघन्यस्पर्धकोंकी नीचेसे अनुभाग कृष्टिं करता है अर्थात् फलदेनेकी शक्तिको क्षीण करता है । उन सूक्ष्मकृष्टिरूप अविभागप्रतिच्छेदोंका प्रमाण एक स्पर्धकमें वर्गणाप्रमाणके अनन्तवें भागमात्र जानना ॥ २८० ॥ उक्कट्टिदइगिभागं पल्लासंखेजखंडिदिगिभागं । देदि सुहुमासु किट्टिसु फड्ढयगे सेसबहुभागं ॥ २८१ ॥ अपकर्षितैकभागं पल्यासंख्येयखंडितैकभागम् । ददाति सूक्ष्मासु कृष्टिषु स्पर्धके शेषबहुभागम् ॥ २८१ ॥ अर्थ-संज्वलनलोभके सब सत्त्वरूपद्रव्य के अपकर्षित एक भागमात्र द्रव्यको ग्रहणकर उसमें पल्यके असंख्यातवें भागसे भाजित एक भागको सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणमाता है और शेष बहुभागको स्पर्धकमें निक्षेपण करता है ॥ २८१ ॥ पडिसमयमसंखगुणा दवादु असंखगुणविहीणकमे । पुवगहेट्ठा हेट्ठा करेदि किट्टि स चरिमोत्ति ॥ २८२ ॥ प्रतिसमयमसंख्यगुणा द्रव्यात् असंख्यगुणविहीनक्रमेण । . पूर्वगाधस्तनां अधस्तनां करोति कृष्टिं स चरम इति ॥ २८२ ॥ अर्थ-कृष्टिकरनेके कालके अन्तसमयतक हरसमय पूर्वपूर्वसमयोंमें की हुई कृष्टियोंके प्रमाणसे आगे आगेके समयमें की गई कृष्टियोंका प्रमाण क्रमसे असंख्यातगुणा घटता हुआ है और अनुभाग अनन्तगुणा घटता है ॥ २८२ ॥ १ कर्म परमाणुओंकी अनुभाग शक्तिके घटानेको कृष्टि कहते हैं । -
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy