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________________ ६६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । हजार बन्ध होता है तो वीस कोड़ा कोड़ी स्थितिधारक नामगोत्रोंका कितना होवे -इस तरह त्रैराशिक करने पर हजार सागरका सांतवेका दो भाग आता है । ऐसे अन्य में भी त्रैराशिक विधान जानना । पलस्स संखभागं संखगुणूणं असंखगुणहीणं । बंधोसरणे पलं पलासंखंति संखवस्संति ॥ २२९ ॥ पल्यस्य संख्यभागं संख्यगुणोनम संख्यगुणहीनम् । बंधापसरणे पल्यं पल्यासंख्यमिति संख्यवर्षमिति ।। २२९ ।। अर्थ — अन्तःकोड़ाकोड़ी स्थितिबन्ध से जबतक पल्यमात्र स्थितिबन्ध हो तबतक स्थितिबन्धापसरणका प्रमाण पल्यके संख्यातवें भाग है, उसके बाद पल्य के असंख्यातवें भागरूप दूरापकृष्टि स्थितितक क्रमसे संख्यातगुणा कम पल्यका संख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्धापसरण होता है । और दूरापकृष्टिस्थिति से लेकर जबतक संख्यातहजार वर्षमात्र स्थितिबन्ध हो वहां पल्यके असंख्यात बहुभागमात्र स्थितिबन्धापसरण है और असंख्यातगुणा कम पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध होता है ऐसा जानना ॥ २२९ ॥ 1 एवं पल्ला जादा वीसीया तीसिया य मोहो य । पलासंखं च कमे बंधेण य वीसियतियाओ ॥ २३० ॥ एवं पल्ये जाते वीसिया तीसिया च मोहश्च । पल्यासंख्यं च क्रमे बंधेन च वीसियत्रिकाः ॥ २३० ॥ अर्थ — उस पल्यस्थिति से परे वीसीय तीसीय मोहनीका स्थितिबन्ध है वह क्रमकरण - कालके अंतमें पल्यका असंख्यातवां भागमात्र है । इसतरह संख्यातहजार स्थितिबन्धापसरण जानेपर वीसीय तीसियोंका पल्यके संख्यातवें भागमात्र मोहका पल्यमात्र स्थितिबन्ध होता है ॥ २३० ॥ मोहगपल्लासंखद्विदिबंध सहस्सगेसु तीदेसु । मोहो तीसिय हेट्ठा असंखगुणहीणयं होदि ॥ २३१ ॥ मोहगपल्यासंख्यस्थितिबन्धसहस्रकेष्वतीतेषु । मोहः तीसियं अधस्तना असंख्यगुणहीनकं भवति ॥ २३१ ॥ अर्थ — मोहगतपल्यके असंख्यात बहुभागमात्र आयाम लिये ऐसे संख्यातहजार स्थिति - बंध वीत जानेपर पूर्वस्थितिबन्धसे असंख्यातगुणा कम तीसिय मोह और वीसिय- इन तीनोंका स्थितिबन्ध होता है ॥ २३९ ॥ तेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेट्ठावि । एक्कसराहो मोहो असंखगुणहीणयं होदि ॥ २३२ ॥
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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