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________________ लब्धिसारः । लोहस्स तदियादो मुहुमगदं विदियदो दु तदियगदं । विदीयादो सुमगदं दवं संखेजगुणिदकमं ॥ ५७० ॥ लोभस्य तृतीयतः सूक्ष्मगतं द्वितीयतस्तु तृतीयगतं । द्वितीयतः सूक्ष्मगतं द्रव्यं संख्येयगुणितक्रमम् ॥ ५७० ॥ १५३ अर्थ — लोभकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणत हुआ द्रव्य थोड़ा है उस द्वितीयसंग्रहकृष्टि से तीसरी संग्रह कृष्टिरूप परिणत द्रव्य संख्यातगुणा है और लोभकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसे सूक्ष्मकृष्टिरूप परिणत द्रव्य संख्यातगुणा है ॥ ५७० ॥ aaraarपढमे कोहस्स य विदियदो दु तदियादो । माणस्स य पढमगदो माणतियादो दु माणपढमगदो ॥ ५७१ ॥ मायतिगादो लोभस्सादिगदो लोभपढमदो विदियं । तदियं च गदा दवा दसपदमद्धियकमा होंति ॥ ५७२ ॥ कृष्टिवेदकप्रथमे क्रोधस्य च द्वितीयतस्तु तृतीयतः । मानस्य च प्रथमगतं मानत्रयात् तु मानप्रथमगतः ।। ५७१ ॥ मानत्रिकात् लोभस्यादिगतो लोभप्रथमतो द्वितीयं । तृतीयं च गतानि द्रव्याणि दशपदमधिकक्रमाणि भवंति ॥ ५७२ ॥ अर्थ – बादर कृष्टिवेदक कालके प्रथमसमय में क्रोधकी द्वितीयसंग्रह कृष्टिसे मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ द्रव्य थोड़ा है, उससे क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ द्रव्य विशेष अधिक है, उससे मानकी प्रथम संग्रहकृष्टि से मायाकी प्रथम संग्रहमें संक्रमण हुआ द्रव्य विशेष अधिक हैं, उससे मानकी दूसरी संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ द्रव्य विशेष अधिक है, उससे मानकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ द्रव्य विशेष अधिक है, उस मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ द्रव्य विशेष अधिक है, उस मायाकी दूसरी संग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ प्रदेश विशेष अधिक है, उससे मायाकी तीसरी संग्रहसे लोभकी प्रथम संग्रहमें संक्रमण हुआ प्रदेश विशेष अधिक है, उस लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे लोभकी दूसरी संग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ प्रदेशसमूह विशेष अधिक है और उससे लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टि से लोभकी तीसरी संग्रहकृष्टिमें संक्रमण हुआ प्रदेश विशेषअधिक है | इसतरह दशस्थान अधिक क्रमलिये जानने ॥ ५७१ । ५७२ ॥ कोहस् य पढमादो माणादी कोधतदियविदियगदं । तत्तो संखेजगुणं अहियं संखेज्ज संगुणियं ॥ ५७३ ॥ ल. सा. २०
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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