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________________ १०४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। पडिवडवरगुणसेढी चढमाणापुवपढमगुणसेढी । अहियकमा उवसामगकोहस्स य वेदगद्धा हु॥ ३७४ ॥ प्रतिपतद्वरगुणश्रेणी चटदपूर्वप्रथमगुणश्रेणी। अधिकक्रमा उपशामकक्रोधस्य च वेदकाद्धा हि ॥ ३७४ ॥ अर्थ-उससे पड़नेवालेके सूक्ष्मसांपरायके प्रथमसमयमें आरंभ किया उत्कृष्ट गुणश्रेणी आयाम अन्तर्मुहूर्तकर अधिक है । उससे चढनेवालेके अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें आरंभ हुआ उत्कृष्ट गुणश्रेणी आयाम अन्तर्मुहूर्तकर अधिक है । उससे चढनेवालेके क्रोधवेदककाल संख्यातगुणा है ॥ ३७४ ॥ संजदअधापवत्तगगुणसेढी दसणोवसंतद्धा। चारितंतरिगठिदी दसणमोहंतरठिदीओ ॥ ३७५॥ संयताधःप्रवृत्तकगुणश्रेणी दर्शनोपशांताद्धा। . चारित्रांतरिकस्थितिः दर्शनमोहांतरस्थितिः ॥ ३७५ ॥ अर्थ-उससे पड़नेवाले अप्रमत्तसंयमीके प्रथम समयमें किया गुणश्रेणी आयाम संख्यातगुणा है । उससे दर्शनमोहका उपशम अवस्थाका काल संख्यातगुणा है । उससे चारित्रमोहका अन्तर आयाम संख्यातगुणा है । उससे दर्शनमोहका अन्तर आयाम संख्यातगुणा है ॥ ३७५ ॥ अवराजेठाबाहा चडपडमोहस्स अवरठिदिबंधो। चडपडतिघादिअवरहिदिबंधत्तोमुहुत्तो य ॥ ३७६ ॥ अवराज्येष्ठाबाधा चटपतमोहस्य अवरस्थितिबंधः । चटपतत्रिघात्यवरस्थितिबंधोंतर्मुहूर्तश्च ॥ ३७६ ॥ अर्थ-उससे चढनेवालेके अनिवृत्तिकरणके अन्तसमयमें संभव मोहके स्थितिबन्धकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उससे उतरनेवालेके अपूर्वकरणके अन्तसमयमें संभवती सवकर्मों के स्थितिबन्धकी उत्कृष्ट आबाधा संख्यातगुणी है। उससे चढनेवालेके मोहका जघन्यस्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे उतरनेवालेके मोहके जघन्यस्थितिबन्धका प्रमाण संख्यातगुणा है । उससे चढनेवालेके सूक्ष्मसांपरायके अन्तसमयमें संभव ऐसा तीन घातियाओंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे उतरनेवालेके तीन घातियाकर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उससे उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त संख्यातगुणा है वह एकसमयकम दो घड़ी प्रमाण जानना ॥ ३७६ ॥ चडमाणस्स य णामागोदजहण्णहिदीण बंधो य । तेरसपदासु कमसो संखेण य होति गुणियकमा ॥ ३७७ ॥
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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