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________________ लब्धिसारः। थोड़ा नामगोत्रका, उससे विशेष अधिक तीन घातिया और वेदनीयका उससे तीसरा भाग अधिक मोहका स्थितिबन्ध होता है ॥ ३३२ ॥ कमकरणविणहादो उवरिठविदा विसेसअहियाओ। सवासिं तण्णद्धे हेट्ठा सबासु अहियकमं ॥ ३३३॥ क्रमकरणविनाशात् उपरि स्थिता विशेषाधिकाः । सर्वासां तदद्धायां अधस्तना सर्वासु अधिकक्रमं ॥ ३३३ ॥ अर्थ-क्रमकरण विनाशकालसे ऊपर अर्थात् उस कालके अन्तमें पल्यका असंख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध होनेके वाद उत्तरकालमें सब कर्मोंके स्थितिबन्धोंमें पूर्वस्थितिबन्धसे उत्तर स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। और उस क्रमकरणकालकी आदिमें असंख्यातवर्षमात्र स्थितिबन्धसे पहले संख्यातहजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्धपर्यंत आयु विना सात कर्मोंका स्थितिबन्ध होता है वह भी पूर्वस्थितिबन्धसे आगेका स्थितिबन्ध अधिकक्रम लिये होता है ॥ ३३३ ॥ जत्तोपाये होदि हु असंखवस्सप्पमाणठिदिबंधो। तत्तोपाये अण्णं ठिदिबंधमसंखगुणियकमं ॥ ३३४ ॥ यदुत्पादे भवति हि असंख्यवर्षप्रमाणस्थितिबंधः । तदुपायेन अन्यं स्थितिबंधमसंख्यगुणितक्रमम् ॥ ३३४ ॥ अर्थ-जहांसे लेकर नाम गोत्रादिकोंका असंख्यातवर्षमात्र स्थितिबन्धका प्रारंभ हुआ वहांसे लेकर जो पहला पहला स्थितिबन्ध है उससे पिछला पिछला अन्य स्थितिबन्ध हुआ वह असंख्यातगुणा है ऐसा क्रम जानना ॥ ३३४ ॥ एवं पल्लासंखं संखं भागं च होइ बंधेण । एतोपाये अण्णं ठिदिबंधो संखगुणियकमं ॥ ३३५ ॥ एवं पल्यासंख्यं संख्यं भागं च भवति बंधेन । एतदुपायेन अन्यः स्थितिबंधः संख्यगुणितक्रमः ॥ ३३५ ॥ अर्थ-इसतरह यथासम्भव हीन अधिक प्रमाण लिये पल्यका असंख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध वढता क्रम लिये है वहां सबसे पीछे एक कालमें सातोंकोंका स्थितिबन्ध पल्यके असंख्यातवें भागमात्र ही कहा है । उसके वाद अन्यस्थितिबन्ध होता है वह सातोंकोका संख्यातगुणा ही है ॥ ३३५ ॥ मोहस्स य ठिदिबंधो पल्ले जादे तदा दु परिवड्डी। पल्लस्स संखभागं इगिबिगलासण्णिबंधसमं ॥ ३३६ ॥ ..
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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