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________________ ९२ . रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-इससरह वीर्यातराय आदिका देशघातीबन्ध होता था वह उलटा सर्वघातीरूप अनुमागध होनेलगा। उसके बाद हजारों स्थितिबन्ध होनेपर असंख्यात समयप्रबद्धकी उदीरणा होनेका अभाव हुआ ॥ ३२९॥ लोयाणमसंखेजं समयपबद्धस्स होदि पडिभागो। तत्तियमेत्तद्दवस्सुदीरणा वट्टदे तत्तो ॥ ३३०॥ लोकानामसंख्येयं समयप्रबद्धस्य भवति प्रतिभागः । तावन्मात्रद्रव्यस्योदीरणा वर्तते ततः ॥ ३३० ॥ अर्थ-अब असंख्यातलोकका भागहार समयप्रबद्धको हुआ इसलिये असंख्यात समय प्रबद्धोंकी उदीरणाका नाश होकर अब एक समयप्रबद्ध के असंख्यातवें भागमात्र द्रव्यकी उदीरणा होनेलगी ॥ ३३० ॥ तकाले मोहणियं तीसीयं वीसियं च वेयणियं । मोहं वीसिय तीसिय वेयणिय कम हवे तत्तो ॥ ३३१॥ तत्काले मोहनीयं तीसियं वीसियं च वेदनीयम् ।। मोहं वीसियं तीसियं वेदनीयं क्रमं भवेत् ततः ॥ ३३१ ॥ अर्थ-उस असंख्यात लोकमात्र भागहार संभव होनेके समयमें मोहका सबसे थोड़ा पत्यका असंख्यातवां भागमात्र, उससे असंख्यातगुणा तीन घातियाओंका, उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका, उससे साधिक वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है । उससे परे संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर मोहका थोड़ा पत्यके असंख्यातवें भागमात्र, उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका, उससे विशेष अधिक तीन घ.तियाओंका, उससे विशेष अधिक वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है ॥ ३३१ ॥ मोहं वीसिय तीसिय तो वीसिय मोहतीसयाण कर्म । वीसिय तीसिय मोहं अप्पाबहुगं तु अविरुद्धं ॥ ३३२ ॥ मोहं वीसियं तीसियं ततो वीसियं मोहतीसियानां क्रमं । वीसियं तीसियं मोहं अल्पबहुकं तु अविरुद्धम् ॥ ३३२ ॥ अर्थ-उसके वाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर सबसे थोड़ा मोहका उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका उससे विशेष अधिक तीन घातिया और वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है । उसके बाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर सबसे थोड़ा नामगोत्रका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र उससे विशेष अधिक मोहका उससे विशेष अधिक तीन घातिया और वेदनीयका सितिबन्ध होता है। उसके वाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीतनेपर
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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