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________________ लब्धिसारः। स्थितिबन्ध होता है । इसतरह संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर मानवेदककाल समाप्त हो. जाता है ।। ३१७ ॥ ओदरगकोहपढमे छक्कम्मसमाणया हु गुणसेढी। वादरकसायाणं पुण एतो गलिदावसेसं तु ॥ ३१८ ॥ अवतरकक्रोधप्रथमे षट्कर्मसमानिका हि गुणश्रेणी। बादरकषायाणां पुनः इतः गलितावशेषं तु ॥ ३१८ ॥ अर्थ-उसके बाद उतरनेवाला अनिवृत्तिकरण है वह संज्वलनक्रोधके उदयके प्रथमसमयमें अप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलन क्रोध मान माया लोभरूप बारह कषायोंकी ज्ञानावरणादि छहकर्मोंके समान गलितावशेष गुणश्रेणी करता है ॥ ३१८ ॥ ओदरगकोहपढमे संजलणाणं तु अट्टमासठिदी। छण्हं पुण वस्साणं संखेजसहस्सवस्साणि ॥ ३१९ ॥ अवतरकक्रोधप्रथमे संज्वलनानां तु अष्टमासस्थितिः । षण्णां पुनः वर्षाणां संख्येयसहस्रवर्षाणि ॥ ३१९ ॥ अर्थ-उतरनेवालेके क्रोधउदयके प्रथमसमयमें संज्वलन चार कषायोंका आठ महीने, तीनघातियाओंका संख्यातहजार वर्ष, उससे संख्यातगुणा नामगोत्रका, उससे डौढा वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है ॥ ३१९ ॥ ओदरगपुरिसपढमे सत्तकसाया पण?उवसमणा । उणवीसकसायाणं छक्कम्माणं समाणगुणसेढी ॥ ३२० ॥ अवतरकपुरुषप्रथमे सप्तकषायाः प्रणष्टोपशमकाः। एकोनविंशकषायाणां षट्कर्मणां समानगुणश्रेणी ॥ ३२०॥ अर्थ-संज्वलनक्रोधवेदककालमें पुरुषवेदके उदय होनेके प्रथमसमयमें पुरुषवेद, छह हास्यादि-ये सात कषाय हैं वे नष्ट उपशम करणवाले होजाते हैं तव ही बारहकषाय और सातनोकषाय-ऐसे उन्नीस कषायोंकी ज्ञानावरणादि छहकर्मों के समान आयाममें गुणश्रेणी करता है ॥ ३२० ॥ पुंसंजलणिदराणं वस्सा बत्तीसयं तु चउसही। संखेजसहस्साणि य तकाले होदि ठिदिबंधो ॥ ३२१ ॥ पुंसंज्वलनेतरेषां वर्षाणि द्वात्रिंशत् तु चतुःषष्ठिः। संख्येयसहस्राणि च तत्काले भवति स्थितिबंधः॥ ३२१ ॥ अर्थ-उतरनेवालेके पुरुषवेद उदयके प्रथमसमयमें पुरुषवेदका बत्तीसवर्ष, संज्वलनचा ल. सा. १२
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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