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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । ओदरमायापढमे मायातिण्हं च लोभतिण्हं च । ओदरमायावेदगकालादहियो दु गुणसेढी ॥३१४ ॥ अवतरमायाप्रथमे मायात्रयाणां च लोभत्रयाणां च । . अवतरमायावेदककालादधिकस्तु गुणश्रेणी ॥ ३१४ ॥ अर्थ-उतरनेवाला अनिवृत्तिकरण मायावेदक कालके प्रथमसमयमें अप्रत्याख्यानादि तीन मायाके द्रव्यको और तीनलोभके द्रव्यको अपकर्षणकर उदयावलिसे बाह्य साधिक मायावेदककालमात्र अवस्थित आयाममें गुणश्रेणी करता है । यहां संक्रमण होता है॥ ३१४ ॥ ओदरमायापढमे मायालोमे दुमासठिदिबंधो। छण्हं पुण वस्साणं संखेजसहस्सवस्साणि ॥३१५॥ अवतरमायाप्रथमे मायालोमे द्विमासस्थितिबन्धः । षण्णां पुनः वर्षाणां संख्येयसहस्रवर्षाणि ॥ ३१५॥ अर्थ-उतरनेवाले माया वेदक कालके प्रथमसमयमें संज्वलन मायालोभका दो महीने तीन घातियाओंका संख्यातहजार वर्ष, तीन अघातियाओंका उससे भी संख्यातगुणा स्थितिबन्ध होता है । इसप्रकार संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर मायावेदककाल समाप्त होजाता है ॥ ३१५॥ ओदरगमाणपंढमे तेत्तियमाणादियाण पयडीणं । ओदरगमाणवेदगकालादहिओ दु गुणसेढी ॥ ३१६ ॥ अवतरकमानप्रथमे तावन्मानादिकानां प्रकृतीनाम् । अवतरकमानवेदककालादधिकस्तु गुणश्रेणी ॥ ३१६ ॥ अर्थ-उसके वाद मानवेदककालके प्रथमसमयमें संज्वलनमानके द्रव्यको अपकर्षणकर उदयावलिके प्रथमसमयसे लेकर और दो मान तीन माया तीनलोभोंके द्रव्यको अपकर्षणकर उदयावलिसे बाह्य प्रथमसमयसे लेकर आवलि अधिक माया वेदक कालप्रमाण अवस्थित आयाममें गुणश्रेणी करता है ॥ ३१६ ॥ ओदरगमाणपढमे चउमासा माणपहुदिठिदिवंधो। छण्हं पुण वस्साणं संखेजसहस्समेत्ताणि ॥ ३१७ ॥ अवतरकमानप्रथमे चतुर्मासा मानप्रभृतिस्थितिबंधः। षण्णां पुनः वर्षाणां संख्येयसहस्रमात्राणि ॥ ३१७ ॥ अर्थ-उसी उतरनेवाले मानवेदक कालके प्रथमसमयमें संज्वलनमानमायालोभोंका चार महीने, तीन घातियाओंका संख्यातहजार वर्ष, तीन अघातियाओंका उससे संख्यातगुणा
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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