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________________ लिखा है । यह इसलिये किया गया है जिसमें वेदों को कोई अंश खों न जाय, अथवा उसमें पाठान्तर न हो जाय । एक अनुक्रमणी में तो ऋग्वेद के सूक्तों की, मंत्रों की, शब्दों की, यहां तक कि अक्षरों तक की गिनती भी दी है ?" ___“प्रातिशाख्य, परिशिष्ट, बृहदेवता, निरुक्त आदि भी वैदिक साहित्य के अङ्ग हैं।" ___"ऋग्वेद सब वेदों से पुराना है । वही सबसे अधिक महत्त्व का भी है । मंडल नामक १० अध्यायों में वह विभक्त है । कोई १५ प्रकार के वैदिक छन्दों में उसकी रचना हुई है । ऋग्वेद का कोई चतुर्थाश गायत्री-नामक छन्द में है । ऐसे तीन ही छन्द हैं जिनका प्रयोग अधिकता के साथ किया गया है और छन्दों का कम प्रयोग हुआ है । ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना भिन्न भिन्न ऋषियों के द्वारा भिन्न भिन्न समय में हुई है । इस वेद के ऋषि प्रतिभाशाली कवि थे-कवि नहीं, श्रेष्ठ कवि थे । इसके अधिकांश मन्त्रों की रचना वैदिक देवताओं का उद्देश करके की गई है । उनमें उनके बल, वीर्य, शक्ति, प्रभुता, औदार्य आदि की प्रशंसा है । इन मंत्रों के रचयिता ऋषियों ने देवताओं की स्तुति और प्रशंसा के द्वारा उनसे लौकिक सुख-प्राप्ति के लिए प्रार्थना की है । बहुत से पशु, बहुत से पुत्र पौत्र, बहुत सा ऐश्वर्य, दीर्घायु और शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए उन्हों ने देवताओं की स्तुति की है । लौकिक सुख-प्राप्ति की तरफ उनका १ सुरा मांस द्यूत स्त्रैण आदि की बेहूदी बातें करते थे आप उनको श्रेष्ठ समझते हैं ? धन्य है ऐसे श्रेष्ठ कवियों को। २ जिन वैदिक ऋषियों को लौकिक सुख की तरफ ध्यान अधिक था फिर उन ऋषियों को तत्त्ववेत्ता कौन कह सकता है ! और जिन वेदों में पारलौकिक अर्थात् मक्ति सुख प्राप्त करने की बातें कम और लौकिक सुख की बातें विशेष हैं उन ग्रन्थों को कौन बुद्धिमान समार्गदर्शक शास्त्र कह सकता है ? वाममार्गी आदि नास्तिक लोगों का भी लौकिक सुख की तरफ ही ख्याल रहता है और जब वैदिक ऋषियों का यह हाल था तो फिर वैदिक ऋषियों में और वाममार्गियों में अन्तरही क्या रहा !
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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