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________________ परन्तु एक बार सत्यमार्ग को दिखादेना हमारा कर्तव्य है । ___ जगत्कर्ता-माननेवालों का कहना है कि विना ईश्वर के संसार में सब पदार्थ शून्य है, अर्थात् ईश्वर सर्व व्यापक है और ईश्वर के विना दूसरा पदार्थ ही नहीं है, यदि ऐसाही है तो दान-पुण्य करनेवाला भी ईश्वर हुआ और लेनेवाला भी ईश्वर ही हुआ? अतएव लेने देने में कुछ अन्तरही नहीं रहा ? ईश्वर ने अपना दान आपही ले लिया ! फिर अमुक व्यक्ति ने दिया और अमुक ने लिया, और देनेवाले को बहुत पुण्य हुआ इत्यादि कहनाही असत्य ठहरेगा ? इससे तो दान पुण्य करनाही वृथा हुआ। ऐसेही मारनेवाला भी ईश्वर है और मरनेवाला भी ईश्वर है अत: ईश्वर ने ईश्वर को मारा ! इसमें किसी का कोई भी शत्रु मित्र न रहा क्योंकि दोनों में व्यापक ईश्वर है । एवं द्रव्य का स्वामी भी ईश्वर है और उस द्रव्य का चोरानेवाला भी ईश्वर है इससे तो अपना द्रव्य आपनेही चोराया ! दूसरे को चोर कहने से क्या गरज ? क्यों कि जो ईश्वर द्रव्यवाले पुरुष में व्यापक है वही चोर में भी तो व्यापक है। तथा वर्ग में भी ईश्वर है और नरक में भी ईश्वर है इससे स्वर्ग के सुखों का भी आनन्द ईश्वर को होना और नरक के रौरव दुःख की घेदना भी उसकोही होना मानना चाहिए ! पुण्यवान् स्वर्ग जाता है और पापी नरक जाता है यह कहना भी झूठा होगा । परन्तु स्मरण रहै कि आपका मन्तव्य उपर्युक्त दृष्टान्तों से असत्य हो चुका। घट घट में (पुद्गल पुद्गल में-शरीर-शरीर में) जीव अलग अलग है और उनके कर्म भी पृथक् पृथक् हैं । जो लोग सारे संसार में ईश्वर को व्यापक कहते हैं उनकी पूरी भूल है । इतने पर भी जिनको इस बात की हठ हो उनसे हम पूछते हैं कि यदि एक ईश्वर सर्व व्यापक है तो चंडाल, राजा, आदिकों को उच्च, नीच कहने से क्या गरज ? एक पुण्य करे तो उसका फल सारे संसार को क्यों नहीं मिलता ? एक के नरक भागी होने से सारा संसार ही नरक का भागी क्यों नहीं होता? एक श्रीमान् होने से सारी सृष्टि श्रीमान क्यों नहीं होती ? और एक भिक्षुक होने से सारी सृष्टि भिक्षुक क्यों नहीं हो जाती किन्तु उक्त बातें तो नहीं होती, फिर सब पदार्थों में एकही परमात्मा व्यापक हम
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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