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________________ ( ३८ ) मानने से आप लोगों का ईश्वर अडपिश्रित होना सिद्ध होता है और जडमिश्रित होने से समल और निर्मल दोनों अवस्था प्राप्त होनी ही चाहिए। दूसरी बात यह है कि जडमिश्रित ईश्वर होने से आपका ईश्वर ज्योतिःस्वरूप निराकार नहीं हो सक्ता । और पांच भूतों से जगदुत्पत्ति मानियेगा तो पांच भूत अनादि शाश्वत पहिले सिद्धहो चुके हैं, और अनादि सिद्ध होने से पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इन पांचो भूतों को अपने अपने धर्मानुसार स्वाभाविक कार्य करते ही रहना चाहिए फिर बतलाइये प्रलय कैसे हुआ!और किस पदार्थ का प्रलय होना आपमानते हैं ? यदि इस पर कोई यह कहे कि पञ्चभूत जगत् निर्माण की क्रिया नहीं कर सकते, तो द्रव्यरूप ही नहीं हैं बल्कि कथनमात्र के ही ठहरेंगे ? क्योंकि पदार्थ अपना गुण (धर्म) नहीं त्याग कर सकता, यह स्वाभाविक दृढ नियम है । और जो यह मान लिया जायगा कि पांच भूत अनादि और अनंत काल से चले आये हैं इनका रचयिता कोई नहीं है तो फिर संसार भी अनादि और अनन्त काल का सिद्ध हो चुका। और जब विश्व अनादि अनन्त काल का सिद्ध हो चुका तो फिर उसकी उत्पत्तिकरनेवाला अथवा नाशकरनेवाला किसी को मानना भ्रम में पड़ना है । कई लोग ईश्वर, जीव, प्रकृति (स्वभाव-काल-दिशा) इत्यादि को अनादि कहकर फिर भी जगत् का कर्ता ईश्वर (निरञ्जन-निराकार-सर्वज्ञनित्य उपमावाले) को कहते हैं, क्या यह पूर्वापर विरोध से भरा वाक्य नहीं है ? जब ईश्वर, जीव, प्रकृति अनादि सिद्ध हैं तो रचना ईश्वर ने किन पदार्थों की की ? यदि इसके उत्तर में यह कहेंगे कि सूक्ष्म रूप में से स्थूल रूप किया, इसलिये हम ईश्वर को जगत् का कर्ता मानते हैं, तो सर्व शक्तिमान् कहाँ रहा ? क्योंकि सर्व शक्तिमान तो जब माना जाय कि जब वह नवीन भी कोई पदार्थ उत्पन्न कर सके। नवीन पदार्थ तो उत्पन्न करने की उसमें शक्तिही नहीं है तो वह एक प्रकार की शक्ति से रहित है इससे। उसका सर्व शक्तिमत्त्व धर्म नष्ट हो चुका । जगत्कर्ता मानने में कई दोष आते हैं तथापि हठी और कदाप्रही इस बात को नहीं त्यागते । अस्तु! उनके पूर्वकृत कर्मों की बात है,
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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