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________________ पर बैठ के तपस्या की होगी और उसका फल किस द्वारा प्राप्त हुआ होगा ? जो लोग ईश्वर को सर्वशक्तिमान् जगत् का कर्ता हर्ता मानकर भी कोर्ट कचेहरियों में पुलिस कानष्टेबलों के हाथों के धके खाते फिरते हैं उस समय उनका सर्वशक्तिमान ईश्वर अपने रचे जीवों की रक्षा करने में क्या असमर्थ है ? क्या उस समय ईश्वर का सर्वशक्तिमान्पना नष्ट हो जाता है ? उत्पन्न करने की शक्ति रखना व पालन करने में अशक्त हो जाना क्या यह बात सर्वशक्तिमान् जगन्नियन्ता ईश्वर को उचित है । सत्यपाही जन तो तब आपका सर्वशक्तिमान् ईश्वर स्वीकार करेंगे कि जब ईश्वरवादियों के लिए प्रत्यक्ष में सर्व जीवों के सन्मुख (जो नहीं मानते उनके भी सामने ) आकर कहे कि हे मेरे उत्पन्न किए हुए प्राणिगणों ! मैं तुह्मारे लिए उपस्थित हूं, और जो मेरे को सर्वशक्तिमान् जगत् कर्ता ईश्वर नहीं मानते उनके लिए मैं उपस्थित नहीं हूं। परंतु ऐसा तो दृष्टिगत नहीं होता जो लोग जगन्नियन्ता ईश्वर स्वीकार करते अथवा नहीं करते हैं उन दोनों के लिए सांसारिक संपूर्ण बातें एक समान दृष्टिगत होती हैं फिर आपके जगत्कर्ता ईश्वर को सर्वशक्तिमान हम किसन्याय से कहैं। कितने कहते हैं कि ईश्वर अखण्ड ब्रह्माण्ड में व्यापक है। "जले विष्णुः स्थले विष्णुराकाशे विष्णुमालिनी। विष्णुमालाकुले लोके नास्ति किंचिदवैष्णवम्" ॥ _ भावार्थ-जल में विष्णु,स्थल में विष्णु, आकाश में विष्णु, जो कुछ है वह विष्णु ही की पति माला अर्थात् सर्व लोक विष्णु ही की माला (पति) करके भरा हुआ है अतएव ऐसी कोई भी वस्तुसंसार में नहीं है कि जो विष्णु का रूप नहीं है। ईश्वर को ऐसा संपूर्ण घट पटादि पदार्थों में व्यापक स्वीकार करने से ईश्वर की अखण्डता नष्ट हो जायगी और ईश्वर खंड खंड हो जायगा व ईश्वर को सर्वव्यापी मानने से अनेक दोष आते हैं जीवों में व्यापक होने से निर्लेपता नष्ट होकर कर्मरूपी मैले ईश्वर को लगना
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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