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________________ ( १४ ) कारण केवल ईश्वरीय इच्छाही है। हम पूछते हैं कि ईश्वरीय इच्छा ईश्वर की आज्ञा से प्रतिकूल भी हो जाती है ? अर्थात् ईश्वर जीवों को दुर्वृद्धि भी देता है ? इससे तो ईश्वर ने जीवों को दुर्बुद्धि दे के जान बूझ कर नरक को मेजने का प्रयत्न किया, धन्य है आप के सृष्टि कर्ता दयालु ईश्वर को ! दयालु हो तो ऐसा ही हो । ___एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से बध कराना व उस घातकी मनुष्य को राज्यद्वारा प्राणनाशक कठोर दंड दिलाना यह कार्य ईश्वर के लिए कितनी बहादुरी का है ! धन्य है आप के ईश्वर को व ईश्वरीय इच्छा को! यदि कहा जाय कि एक कार्य तो ईश्वर ने किया और दूसरा कार्य जीव ने किया यह ठीक नहीं है क्योंकि जीव ईश्वरीय इच्छा के सिवाय कुछ करही नहीं सक्ता तो फिर जीव ने कैसे किया और यह दिखाना अनुचित नहीं होगा कि सर्वशक्तिमान् जगमियन्ता ईश्वर को किस युक्ति से मानते हैं ! एक स्थल पर तो सर्वशक्तिमान ईश्वर की इच्छा से कर्म किया और दूसरे स्थल पर जीव ने स्वकर्मानुसार किया यह भी खूब पूर्वापर विरुद्ध वचन है ! एक स्थान पर लिखा है कि परमेश्वर ने अपने आप में विचार किया कि मैं सकल संपूर्ण पदार्थों को उत्पन्न करूं; इस विचार के पूर्ण करने को तपस्या की, तदनन्तर सकल पदार्थों के मूल कारण को उत्पन्न किया और उनको अपना आत्मा दिया इस प्रकार से संपूर्ण पदार्थ उत्पन्न हुए। अब यह परामर्श करने का स्थान है कि निराकार ईश्वर ने किस शरीर से तपस्या की और अपना आत्मा कैसे दिया ? सकल पदार्थों के मूल कारण को किस सामग्री से बनाया! तपस्या किसके प्रीत्यर्थ की? क्योंकि तपस्या का फल कोई देनेवाला होगा, तभी तो ईश्वर को तपस्या करनी पड़ी होगी!जैसे हम तुम किसी भी देवता के आराधन के लिये तपस्या करते हैं तो वह देवता उस तपस्या का फल देता है तद्वत् ईश्वरने तपस्या की तोउसका फल देनेवाला भी कोई होना ही चाहिए। और यहाँ पर यह भी शङ्का उत्पन्न होती है कि प्रथम अकेला निराकार ईश्वर ही था और सकल पदार्थ तो ईश्वर ने पीछे से रचे फिर ईश्वर ने किस स्थान
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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