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________________ (८) है. लिखने का इतना शौक होते भी आपने आजतक एक अक्षर भी मूल्य नही बेचा गुरु र्य श्री केवलचंद्रजी गणि महाराजके करकमलके लिखे हुवे अनेक ग्रंथ हमारे पास मौजूद हैं. आपको केवल शास्त्र लिखनेकाही नहीं किन्तु शास्त्रावलोकन करनेका भी बड़ा शौक है. आप जन्म सेही सत्य वक्ता, दयावान, शांत और योग निष्ट हैं. यूं तो आपने प्रायः सभी संस्कृत ग्रंथ देखेहैं परंतु योग शास्त्रोंको देखनेका अथवा योगाभ्यास का बहुत शौक होनेसे आत्म ध्यानमें हमेशाही तल्लीन रहते हैं जिन २ . महाशयोंने आपके दर्शन किये है वे इस बातको निसन्देह सत्य समझ सकते है पाठक! यह लेख विचारसे अधिक बढ़ गया है इससे यहां पर श्री मन्महाराज श्रीकेवलचंद्रजी गणिजीकी जन्मकुन्डली देकर इसको पूर्ण करता हूँ। विक्रम संवत् १८८५ भाद्रपद कृष्णद शमी गुरौ आमा॑नक्षत्रघटी ५६ पल ४३ उपरांत पुनर्वसु. इष्टघटी ५८ पल ४३ सिंह लग्न वहमाने जन्म. राशी मिथुन. गणिश्री केवलचंद्रजीकी जन्म कुण्डली. ६ रा. शु.श Xसू. ५ बु.) .. --------------- अण्डली. चं. ३ ९ मं. • यह जन्म कुण्डली ज्योतिर्मार्तण्ड रा० कृष्ण सदाशिव बापट शास्त्रीने नष्ट जातकसे की है। गुरु भाक्त परायण. मुमुक्षु-बालचंद्र यति. आकोला (बराड) जैन श्वेतांबर मंदिर.
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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