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________________ १३५ वैधर्म्यसमा जातिवति । अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवदित्यत्रैव प्रयोगे स एव प्रतिहेतुर्वैधयेंण प्रयुज्यते । नित्यः शब्दो निरवयवत्वात् । अनित्यं हि सावयवं दृष्टं घटादीति । न चास्ति विशेषहेतुर्घटसाधर्म्यात् कृतकत्वाद नित्यः शब्दो न पुनस्तधान्निरवयवत्वान्नित्य इति । । । नत्कर्षापकर्षान्यां प्रत्यवस्थानमुत्कर्षापकर्षसमे जाती नवतः । तत्रैव प्रयोगे दृष्टान्तधर्म कंचित्साध्यधर्मिण्यापादयन्नुत्कर्षसमां जाति प्रयुङ्क्ते । यदि घटवत् कृतकत्वादनित्यः शब्दो घटवदेव मूर्तो नवतु । न चेन्मूर्ती घटवदनित्योऽपि मान्नूदिति शब्दे धर्मान्तरोत्कर्षमापादयति । ए । अपकर्षस्तु घटः कृतकः सन्नश्रावणो दृष्टः । एवं शब्दोऽप्यस्तु । नो वरहित होवाथी नित्य नथी. । ४ । वैधर्म्यवमे जे सामा थवं, ते वैधर्म्यसमा जाति थाय ; जेमके शब्द अनित्य ने, कृतक होवाथी, घटनी पेठे ; एवी रीतना तेज प्रयोगनी अंदर, तेज प्रतिहेतु वैधयंवमे जोमवो ; जेमके शब्द नित्य डे, निरवयव होवाथी ; केमके अनित्य ने ते घटादिकनी पेठे अवयवसहित देखायेनुं जे; अहीं कंई विशेष हेतु नथी, घटना साधर्म्यथी कृतक होवाथी शब्द अनित्य बे, पण तेना वैध→थी अवयवरहित होवाथी नित्य नथी. । । नत्कर्ष अने अपकर्षवमे जे सामा थवं, ते नत्कर्षापकर्षसमा जाति थाय जे. जेमके उपरनाज प्रयोगमां दृष्टांतना कोश्क धर्म ने साध्यमिमां प्राप्त करतो बतो नत्कपसमा नामनी जातिनो प्रयोग करे ले ; जेमके ज्यारे घटनी पेठे कृतक होवाथी शब्द अनित्य ले, त्यारे घटनी पेठेज ते मूर्त पण थान? अने जो मूर्त न होय, तो घटनी पेठे अनित्य पण न थान ? एवी रीते शब्दमां बीजा धर्मनो नत्कर्ष मेलवे . ।।ए। अपकर्षसमा जातिनुं खरूप नीचे प्रमाणे ले ; जेमके घमो कृतक होतो थको अश्रावण देखाएलो ने, अने एवी रीते शब्द पण था? अने जो तेम नही तो
SR No.022402
Book TitleSyadvad Manjari
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorMallishensuri, Hiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1902
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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