SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधिकारः ९] समयसारः। ४६५ सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका सेटिकायाः किंतु स्वस्वम्यंशावेवान्यौ । किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तर्हि न कस्यापि सेटिका सेटिका, सेटिकैवेति निश्चयः । यथायं दृष्टांतस्तथायं दार्टीतिकः-चेतयितात्र तावदर्शनगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यं तस्य.तु व्यवहारेण दृश्यं पुद्गलादि परद्रव्यं । अथात्र पुद्गलादेः परद्रव्यस्य दृश्यस्य दर्शकश्वेतयिता किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते--यदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवति इति तत्त्वसंबंधे जीवति चेतयिता पुद्गलादेर्भवन् पुद्गलादिरेव भवेत् । एवं सति चेतयितुः खद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्रव्यस्यास्त्युच्छेदः ? ततो न भवति चेतयिता पुद्गलादेः । यदि न भवति चेतयिता पुद्गलादेस्तर्हि कस्य चेतयिता भवति ? चेतयितुरेव चेतयिता भवति । ननु कतरोन्यश्चेतयिता चेतयितुर्यस्य चेतयिता भवति ? न खल्वन्यश्चेतयिता चेतयितुः किंतु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ । किमत्र साध्यं स्वस्खाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तर्हि न कस्यापि दर्शकः, दर्शको दर्शक एवेति निश्चयः । अपि च सेंटिका तावच्छेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादि णादव्वो इदमोदनादिकं मया भुक्तं, इदमहिविषकंटकादिकं त्यक्त, इदं गृहादिकं कृतं, तत्सर्व व्यवहारेण । निश्चयेन पुनः स्वकीयरागादिपरिणाम एव कृतो भुक्तश्च । एवमित्याद्यन्ये भरा हुआ है ऐसा है । वह आप तो पुद्गलादि परद्रव्यके स्वभावकर न परिणमता हुआ है और पुद्गल आदि परद्रव्यको अपने स्वभावकर नहीं परिणमाता हुआ है । तथा जिसको पुद्गल आदि परद्रव्यनिमित्त है ऐसे अपने ज्ञानगुणकर भरे स्वभावके परिणामकर उपजता हुआ है । वह पुद्गलादि परद्रव्य जिसको चेतयिता निमित्त है ऐसे अपने स्वभावके परिणामकर उपजता हुआ है उसको अपने स्वभावकर जानता है ऐसा व्यवहार किया जाता है। ऐसा तो ज्ञानका व्यवहार है । अब दर्शन गुणका व्यवहार कहते हैं जैसे वही सेटिका जिसका स्वभाव श्वेतगुणकर भरा हुआ है वह आप कुट्यादि परद्रव्यके स्वभावकर तो नहीं परिणमती हुई है और कुट्यादि परद्रव्यको अपने स्वभावकर नहीं परिणमाती हुई है । तथा जिसको कुट्यादि परद्रव्य निमित्त है ऐसे श्वेतगुणकर भरे अपने स्वभावके परिणामकर उपजती हुई है । वह कुट्यादि परद्रव्य जिसको सेटिका निमित्त है ऐसा अपने स्वभावके परिणामकर उपजता हुआ है । उसको अपने स्वभावकर सफेद करती है ऐसा व्यवहार किया जाता है । उसीतरह चेतयिता भी जिसका स्वभाव दर्शन गुणकर भरा है ऐसा है । वह स्वयं (आप) तो पुद्गल आदि परद्रव्यके स्वभावकर नहीं परिणमता है और पुद्गल आदि परद्रव्यको भी अपने स्वभावकर नहीं परिणमाता है । तथा जिसको पुद्गल आदि परद्रव्य निमित्त हैं ऐसा अपने दर्शन गुण ५९ समय
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy