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________________ ४६४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [ सर्वविशुद्धज्ञानद्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादि परद्रव्यं । अथात्र कुड्यादेः परद्रव्यस्य श्वेतस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते । यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसंबंधे जीवति सेटिका कुड्यादेर्भवंती कुड्यादिरेव भवेत् , एवं सति सेटिकायाः खद्रव्योच्छेदः। नच द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वादस्त्युच्छेदः । ततो न भवति सेटिका कुड्यादेः। यदि न भवति सेटिका कुड्यादेस्तर्हि कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति । ननु कतरान्या सेटिका सेटिकायाः यस्याः कीयश्रद्धानपरिणामेनेति चतुर्थगाथा गता। एसो ववहारस्स दु विणिच्छियो णाणदंसणचरित्ते भणिदो भणितः कथितः । कोऽसौ कर्मतापन्नः ? एष प्रत्यक्षीभूतः, पूर्वोक्तगाथांचतुष्टयेन निर्दिष्टो विनिश्चयः, व्यवहारानुयायी निश्चय इत्यर्थः । कस्य संबंधी ? व्यवहारनयस्य । क विषये ? ज्ञानदर्शनचारित्रत्रये । अण्णेसु वि पजएम एमेव द्रव्यका है ऐसा मानिये तो यह न्याय है कि जिसका जो हो वह वही है जैसे आत्माका ज्ञान होता आत्मा ही है अन्य द्रव्य नहीं । ऐसा तत्त्वसंबंध विद्यमान होनेपर चेतयिता पुद्गल आदिका हुआ पुद्गल आदिक ही होगा । ऐसा होनेपर चेतयिताके स्वद्रव्यका उच्छेद हो जायगा । सो द्रव्यका उच्छेद होता नहीं । क्योंकि अन्यद्रव्यको पलटकर अन्य द्रव्य होनेका प्रतिषेध पहले ही कर चुके हैं । इसलिये चेतयिता पुद्गलादिकका नहीं हो सकता । यहां पूछते हैं कि चेतयिता पुद्गल आदिका नहीं है तो कोंनका चेतयिता है ? उसका उत्तर-चेतयिताका ही चेतयिता है। फिर पूछते हैं वह दूसरा चेतयिता कोनसा है ? जिसका यह चेतयिता है। उसका उत्तर-चेतयितासे अन्य चेतयिता तो नहीं है । तो क्या है ? स्वस्खा मि अंश ही अन्य हैं। वहां कहते हैं-यहां निश्चयनयमें स्वस्वामि अंशका व्यवहार कर क्या साध्य है ? कुछ भी नहीं । तब यह ठहरा कि त्यागनेवाला अपोहक है वह किसीका भी अपोहक नहीं है, अपोहक है वह अपोहक ही है ऐसा निश्चय है । अब व्यवहारको कहते हैं-जैसे वही सेटिका जिसका स्वभाव श्वेत गुणकर भरा हुआ है वह आप कुटी आदि परद्रव्य के स्वभावकर नहीं परिणमती तथा कुट्यादिक परद्रव्यको अपने स्वभावकर नहीं परिणमाती हुई जिसको कुट्यादि परद्रव्यनिमित्त है ऐसे अपने श्वेतगुणकर भरे स्वभावके परिणामकर उपजती हुई कुट्यादि परद्रव्यको अपने स्वभावकर सफेद करती है । कैसा है परद्रव्य ? जिसको सेटिका निमित्त है ऐसे अपने स्वभावके परिणामकर उत्पन्न हुआ है । उसको श्वेत करती है ऐसा व्यवहार करते हैं। उसीतरह चेतयिता आत्मा भी जिसका स्वभाव ज्ञानगुणकर चलाये पाठोय स.पुस्तक।
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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