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________________ २६८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [संवरसंति तावजीवस्य, आत्मकमैकत्वाशयमूलानि मिथ्यात्वाज्ञानाविरतियोगलक्षणानि अध्यवसानानि । तानि रागद्वेषमोहलक्षणस्यास्रवभावस्य हेतवः । आस्रवभावः कर्महेतुः । गाथात्रयं गतं ॥ १८७।१८८।१८९ ॥ अथ परोक्षस्यात्मनः कथं ध्यानं भवतीति प्रश्ने सत्युत्तरं ददाति; उवदेसेण परोक्खं रूवं जह पस्सिदूण णादेदि । भण्णदि तहेव धिप्पदि जीवो दिट्ठो य णादो य ॥ उपदेशेन परोक्षरूपं यथा द्रष्टा जानाति । भण्यते तथैव ध्रियते जीवो दृष्टश्च ज्ञातश्च ॥ उवदेसेण परोक्खं रूवं जह पस्सिदूण णादेदि यथा लोके परोक्षमपि देवतारूपं परोपदेशाल्लिखितं दृष्ट्वा कश्चिदेवदत्तो जानाति। भण्णदि तहेव धिप्पदि कर्म । __ आगे पूछते हैं कि किस क्रमसे होता है ? उसका उत्तर कहते हैं;-[ तेषां पूर्वकहे हुए रागद्वेष मोहरूप आस्रवोंके [ हेतवः ] हेतु [ सर्वदर्शिभिः ] सर्वज्ञदेवने [मिथ्यात्वं ] मिथ्यात्वं [अज्ञानं ] अज्ञान [च अविरतभावः ] अविरतभाव [च योगः ] और योग ये चार [ अध्यवसानानि ] अध्यवसान [भणिताः] कहे हैं सो [ ज्ञानिनः ] ज्ञानीके [ हेत्वभावे ] इन हेतुओंका अभाव होनेसे [ नियमात् ] नियमसे [ आस्रवनिरोधः ] आस्रवका निरोध [जायते] होता है और [ आस्रवभावेन विना] आस्रवभावके विना ( न होनेसे ) [कमणः अपि ] कर्मका भी [ निरोधः ] निरोध [ जायते ] होता है [च ] और [कर्मणः अभावेन ] कर्मके अभावसे [ नोकर्मणां अपि ] नोकर्मोंका भी [निरोधः] निरोध [ जायते ] होता है [च] तथा [ नोकर्मनिरोधेन ] नोकर्मके निरोध होनेसे [ संसारनिरोधनं ] संसारका निरोध [ भवति ] होता है । टीका-पहले ही जीवके आत्मा और कर्मके एकपनेके निश्चयरूप आशयस्वरूप मूलकारणवाले मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगस्वरूप अध्यवसान विद्यमान हैं वे राग द्वेष मोहस्वरूप आस्रवोंके कारण हैं, आस्रवभाव कर्मके कारण हैं, कर्म नोकर्मके कारण हैं और नोकर्म संसारके कारण हैं । इसलिये आत्मा नित्य ही आत्मा और कर्मके एकपनेके निश्चयरूप आशयसे आत्माको निश्चयकर मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगमय मानता है । उस निश्चयसे राग द्वेष मोहरूप आस्रव भावोंको भाता है उससे कर्मका आस्रव होता है, कर्मसे नोकर्म होता है और नोकर्मसे संसार प्रगट प्रवर्तता है । तथा जिस समय यह आत्मा, आत्मा और कर्मके भेद ज्ञानकर शुद्ध चैतन्य चमत्कार मात्र आत्माको पाता है उस समय मिथ्यात्व अज्ञान अविरति योगस्वरूप अध्यवसानरूप आसवभावोंके कारणोंका इस ( आत्मा ) के अभाव होता है, मिथ्यात्व आदिका अभाव
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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