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________________ समयसारः। १४९ यमज्ञानीभूतः कर्तृत्वमुपढौकमानो विकारेण परिणम्य यं यं भावमात्मनः करोति तस्य तस्य किलोपयोगः कर्ता स्यात् ॥ ९० ॥ ___ अथात्मनस्त्रिविधपरिणामविकारकर्तृत्वे सति पुद्गलद्रव्यं खत एव कर्मत्वेन परिणमतीत्याह; जं कुणइ भावमादा कत्ता सो होदि तस्स भावस्स। कम्मतं परिणमदे तह्मि सयं पुग्गलं दव्वं ॥९१ ॥ यं करोति भावमात्मा का स भवति तस्य भावस्य । कर्मत्वं परिणमते तस्मिन् स्वयं पुद्गलद्रव्यं ॥ ९१ ॥ आत्मा ह्यात्मना तथापरिणमनेन यं भावं किल करोति तस्यायं कर्ता स्यात्साधकवत् भावेनेकविधोपि पूर्वोक्तमिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रपरिणामविकारेण त्रिविधो भूत्वा जं सो करेदि भावं यं परिणामं करोति स आत्मा उवओगो चैतन्यानुविधायिपरिणाम उपयोगो भण्यते तल्लक्षणत्वादुपयोगरूपः । तस्स सो कत्ता निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानपरिणामच्युतः सन् तस्यैव मिथ्यात्वादित्रिविधविकारपरिणामस्य कर्ता भवति । न च द्रव्यकर्मण इति भावः ॥९॥ अथात्मनो मिथ्यात्रिविधपरिणामविकारकर्तृत्वे सति कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलद्रव्यं स्वत एवोपादानरूपेण कर्मत्वेन परिणमतीति कथयति;-जं कुणदि भावमादा कत्ता सो होदि भावको [ करोति ] स्वयं करता है [ तस्य ] उसीका [सः] वह [कर्ता] कर्ता [भवति ] होता है ॥ टीका-पह ली गाथामें कहे गये जो तीन प्रकारके उपयोगके परिणाम वे अब पूर्वोक्त प्रकार अनादि अन्यवस्तुभूत मोहकर सहित होनेसे आत्मामें उत्पन्न हुए जो मिथ्यादर्शन अज्ञान अविरति भावरूप तीन परिणाम विकार उनको निमित्तकारण होनेसे, आत्माका स्वभाव परमार्थसे देखा जाय तो शुद्ध निरंजन एक अनादिनिधन वस्तुका सर्वस्वभूत चैतन्य भावपनेकर एक प्रकार है तौभी, अशुद्ध सांजन अनेक भावपनेको प्राप्तहुआ तीन प्रकार होके आप अज्ञानी हुआ कर्तापनेको प्राप्त होता विकाररूप परिणामकर जिस जिसभावको आप करता है उस उस भावका उपयोग प्रगटपने निश्चयकर कर्ता होता है ॥ भावार्थ-पहले कहा था कि जो परिणमे वह कर्ता है सो यहां अज्ञानरूप होके उपयोग परिणमा वह जिसरूप परिणमा उसीका कर्ता कहा । शुद्ध द्रव्यार्थिक नयकर आत्मा कर्ता नहीं है । यहां उपयोगको कर्ता जानना उपयोग और आत्मा एक ही वस्तु है इसलिये आत्माको ही कर्ता कहा जाता है ॥९० ॥ ___ आगे आत्माके तीन प्रकार परिणामविकारका कर्तापना होनेपर पुद्गलद्रव्य आप ही कर्मपनेरूप होके परिणमता है ऐसे कहते हैं;-[ आत्मा] आत्मा [यं भावं] जिस भावको [करोति ] करता है [तस्य भावस्य ] उस भावका [कर्ता]
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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