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________________ विसयाविक्खो णिवडइ णिरविक्खो तरइ दुत्तरभवोघं देवी दीव समागम भाउअजुअलेण दिलुतो॥३०॥ दोहा। जिनरक्षित-जिनपालसम, रत्न द्वीपमें जाय । परें, तरै नर विषयकी, इच्छानिच्छसहाय ॥ ३० ॥ जं अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तमं तिलोअंमि। तं जाणसु विसयाणं वुड्डिक्खयहेउअंसबं॥३१॥ दोहा। दारुण दुख अरु सरस सुख, जेते तीन जहान । विषयचाहकी वृद्धि अरु, नाश हेतुतें जान ॥ ३१ ॥ इंदियविसयपसत्ता पडंति संसारसायरे जीवा । पक्खिव्व छिण्णपंखा सुसीलगुणपेहुणविहूणा।।३२।। दोहा। इन्द्रियविषयासक्त जन, संजमशीलविहीन। छिन्नपंख पंखीनिसम, परै भवोदधि दीन ॥ ३२॥ ण लहइ जहा लिहतो मुहल्लियं अडिअं जहा सुणओ। सोसइ तालुअ रसि विलिहंतो मण्णए सुक्खं ॥ ३३ ॥ महिलाण कायसेवी ण लहइ किंचि वि सुहं तहा पुरिसो ।
SR No.022372
Book TitleIndriya Parajay Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhulal Shravak
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1912
Total Pages38
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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