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________________ से दोनो तरफ दीवाल पर प्रकाश मंडल रचकर दूसरी तरफ निकलकर उस तरफ के तीन अनार्य खंड जीतकर दूसरी गुफा में होकर उसमें भी उसी तरह प्रकाश मंडल की सहायता से अपने खंड में आते है । इस तरह गुफा प्रकाश मंडल से प्रकाशित होनेसे दूसरी तरफ के खंडो में आने जाने का व्यवहार सुलभ होता है । वैताढ्य के 144 बील । भरत और रावत के वैताढ्य में दक्षिण तरफ और उत्तर तरफ ये गंगा सिंधु आदि महानदि के दोनो तट उपर नो नो बील होने से हर वैताढ्य की 72 बील अर्थात् छोटी गुफा है, इसलिये भरत व अरावत के दो वैताढ्य के १४४ बील है, अवसर्पिणी के छठे आरे में जब बहोत धूप व ठंडी आदि उपद्रव से मनुष्य एवं पशुओ का संहार (नाश) काल आयेगा,, तब बीलो में रहे हुए मनुष्य एवं पशु -पंखी जींदे रहेगे । और पुनः मनुष्य व पशुओ की वृध्धि इसी बीज रूप मनुष्य व पशुओ से होगी। (चार व चोत्रीश तीर्थंकर पूर्व बतायी हुई 34 विजयो में 1-1 तीर्थकर गिनने से उत्कृष्ट काल से 34 तीर्थकर होते है और जद्यन्य से 4 तीर्थकर भगवान महाविदेह क्षेत्र में विचरते है। (चक्रवर्ती - वासुदेव - 'बलदेव 4 व 30) महाविदेह में उत्कृष्ट से (28 विजय में ) 28 चक्रवर्ती अथवा 28 वासुदेव और 28 बलदेव होते है और उसी समय भरत औरावत में भी चक्रवर्ती आदि होने पर जुबूद्वीप में उत्कृष्ट काल से 30 चक्रवर्ती आदि होते है और जघन्य से 4 महाविदेह मे ही होते है । और महाविदेह की 28 विजय पदार्थ प्रदीप Om 64
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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