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________________ तथाप्रकारके उपघातका अभाव होनेसे वेदना समुद्घात बिना दो समुद्घात होते है। चोवीश दंडक में तीन द्रष्टि । 3 विकलेन्दिय में - मिथ्या, सास्वादन. 2, 5 स्थावर में - मिथ्या 1 16 शेष दंडक में - तीनद्रष्टि । | चोवीश दंडक में चार दर्शन 5 स्थावर को - अचक्ष दर्शन1 चउरिन्द्रिय को · चक्षु , अचक्षु 1 द्वीन्द्रिय को - 1 ग. मनुष्य को - चार दर्शन 1 तेइन्द्रिय को . " 15 शेष दंडक में केवल दर्शन बिना तीन दर्शन । चौवीश-दंडक में पांच ज्ञान तीन अज्ञान। 13 देवदंडक में - 3 ज्ञान, 3 अज्ञान 1 ग. तिर्यन्च में . " 1 नारक में . 5 स्थावर में - दो अज्ञान 3 विकलेन्द्रिय में · दो ज्ञान, दो अज्ञान : 1 ग. मनुष्य में • पांच ज्ञान, 3 अज्ञान ० मिथ्यात्वी को अज्ञान व समकिती को ज्ञान होता है । ० पृथ्वी, अप व वनस्पति इन 3 दंडकमें भी सास्वादनकी अपेक्षासे 2 ज्ञान भी किसी जगह प्रवचनमें माने गये है। पदार्थ प्रदीप D44
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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