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________________ 3. वैक्रिय काययोग - वैक्रिय शरीर की गमनादि क्रिया के समय आत्मा में प्रवृत्त होता व्यापार । 4. वैक्रिय मिश्र काययोग - वैक्रिय शरीर एवं कार्मण शरीर के तथा वैक्रिय शरीर एवं औदारिक शरीर के मिश्रणवाले शरीर की गमनादि क्रिया के समय आत्मा में प्रवृत्त होता व्यापार । 5. आहारक काययोग - आहारक शरीर की गमनादि क्रिया के समय आत्मा में प्रवृत होता व्यापार । 6. आहारक मिश्र काययोग - औदारिक शरीर एवं आहारक शरीर के मिश्रण समय आत्मा में प्रवृत होता व्यापार | 7. कार्मण काययोग - केवल कार्मण एवं तैजस दो ही शरीर हो तब उनमें प्रवृत होने वाला व्यापार | [ 12 प्रकार के उपयोग ) 1. साकारोपयोग - पांच प्रकार की ज्ञानशक्ति एवं तीन प्रकार की अज्ञान शक्ति का प्रयोग इस तरह 8 प्रकार का साकारोपयोग है । 2. निराकारोपयोग - चार प्रकार की दर्शन शक्ति का प्रयोग वह निराकारपयोग । उपपात किस दंडक में ओक समय में कितने जीव उत्पन्न होते है, वह उपपात द्वार तथा उसमें विरह कितना होता है । च्यवन किस दंडकमेंसे एक समय में कितने मरते है, उसमें विरह कितना होता है, वह बताया जायेगा। स्थिति, आयुष्य व पर्याप्ति का उल्लेख पूर्व में हो गया है । पदार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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