SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन्द्रिय के प्रकार छद्मस्थ आत्मा का ज्ञान करने का मुख्य साधन इन्द्रिय है । ० जिर्केन्द्रिय : 1. द्रव्य जिवेन्द्रिय = (अ) उपकरण जिह्वेन्द्रिय (ब) निवृत्तिजिह्वेन्द्रिय (A) बाह्यनिवृत्तिजिह्वेन्द्रिय (B) अभ्यन्तर निवृत्तिजिह्वेन्द्रिय 2: भाव जिह्वेन्द्रिय = (अ) लब्धि जिह्वेन्द्रिय (ब) उपयोग जिवेन्द्रिय 1. बाह्य निवृत्ति जिह्वेन्द्रिय - बहार से देखी जाती जीभ 2. अभ्यतंर निवृत्ति जिह्वेन्द्रिय - जीभ के अंदर रहा हुआ अस्त्रा जैसा आकार । 3. उपकरण जिवेन्द्रिय - बहार के तथा अंदर के आकार में रही हुई तलवार की धार में छेदने की शक्ति समान विषय ग्रहण करने की शक्ति । 4. लब्धि भाव जिहवेन्द्रिय - जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्मो के क्षयोपशम अनुसार जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञान शक्ति । 5. उपयोग भाव जिह्वेन्द्रिय - जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञानावरणीय कर्मो के क्षयोपशम रुप जिह्वेन्द्रिय मतिज्ञान का व्यापार | समुद्घात ० समुद्घात - बलात्कार से आत्म प्रदेशो को बहार निकालकर अधिकतर कर्मो की उदीरणा करके नाश करने का प्रयत्न विशेष । 1. वेदना समुद्रघात · वेदना से पीडित जीव आत्मप्रदेशो को बहार निकालकर शरीर के रिक्त भागो को आत्मप्रदेशो से भर देता है तथा शरीर की उचाई और जाडाई में आत्मप्रदेशो द्वारा समान प्रमाण का दण्डाकार हो जाता है, उस वक्त उदीरणा करण से अशाता वेदनीय के अधिक कर्म पदार्थ प्रदीपE D ( 32 )
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy