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________________ । छ प्रकार की लेश्य जन्मसे जो स्वभाव होता है उसे लेश्या कहते है, जैसे कोई प्राणी शांत हो, कोई उग्र कडक स्वाभाववाला, कोई दयालु, मंद, उतावला आदि । कषाय के कर्मपुद्गल में सम्मिलित कृष्णादि वर्ण के जो कर्मपुद्गल होते है, उसे द्रव्य लेश्या कहते है । द्रव्य लेश्या के अनुसार उत्पन्न होनेवाले स्वभाव को भाव लेश्या कहते है । अथवा प्रज्ञापना में औदारिकादि वर्गणा की तरह लेश्या पुद्गल की भी वर्गणा होती है, जो अनंतानंत पुद्गलसे बनती है, प्रत्येक लेश्या के परिणाम व द्रव्य की अपेक्षासे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थान होते है, लेश्या के स्वभाव को समझने के लिए जंबु खाने की ईच्छावाले छ पुरुष का उदाहरण बहोत ही उपयोगी है।। जैसे, 1. वृक्ष को मूल से उखाड दीया जाय । 2. कोई बडी बडी शाखाओं को तोडे । 3. कोई छोटी छोटी शाखओ को तोडे । 4. कोई जंबू के गुच्छो को नीचे डाले । 5. कोई केवल जंबू को ही फेके । 6. कोई केवल नीचे गिरे हुए जंबू का भक्षण करे । सयोगी गुण स्थानक की शुभ लेश्या देशोन पूर्व कोटी तक टीकती है, शेष मनुष्य तिर्यञ्च की लेश्या अंतर्मुहूर्त में परिवर्तित होती रहती है, देवता-नारकी के भव में पीछले भव की लेश्या साथ आती है । आगामी भव में अंतर्मुहूर्त तक साथ रहती है, और अपने भव में द्रव्य की अपेक्षा एक ही लेश्या होती है, मगर (परिणाम वश) अन्य लेश्या पुद्गल जुडने पर आकार प्रकार में थोडासा अल्प परिवर्तन होता है । जिससे भिन्न लेश्या का परिणाम देखने में आता है। इसी के आधार सातमी नारकी का जीव समकित को प्राप्त कर सकता है । और तेजोलेश्यावाले संगम जैसे वैमानिक देवने भी वीरप्रभु को उपसर्ग किया । 31 प दार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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