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________________ वेगा गति का होता है उस गति से छ महिने चलने पर भी विमान की बाह्य गोलाई/ परिधि का पार नहि कर सकते, इतने बडे बडे असंख्य विमान स्वर्ग लोक में है। ० देव का आहारादि - दस हजार वर्ष की उम्रवाला देव अक दिन छोडकर आहार लेता है, 7 स्तोकके बाद ओक श्वास ग्रहण करता है । उससे ज्यादा आयुष्य वाला 2 से 9 दिन बाद आहार, 2 से 9 मुहुर्त बाद श्वास लेता है। ० सागरोपम आयुष्य वाला - 15 दिन बाद श्वास, 1000 वर्ष बाद आहार सागरोपम के अनुसार पक्ष व वर्ष में बढोतरी करते रहे, जैसे -2 सागरोपम वाला दो पक्ष बाद श्वास, 2000 वर्ष बाद आहार ग्रहण करता है | आहार के स्वादिष्ट पुद्गल अपने आप मुंह में आ गिरते है और बडी तृप्ति का अनुभव होता है | ० सागर का नीर - वारूणीवर समुद्र के पाणी का स्वाद मदिरा जैसा, क्षीर समुद्र का पाणी खीर जैसा , घृतवर समुद्र का पाणी घी जैसा , लवण समुद्र का नमक जैसा, पुष्करोदधि का सामान्य पानीजैसा, स्वयंभूरण समुद्र का सामान्य पानी, शेष असंख्य समुद्र का शेलडी के रस जैसा। | कौन ! कौन सी नरक में जाता है ? ] असंज्ञी पञ्चे. पशु पक्षी . पहली नरक में. भुजा बल से चलने वाले नवेला नोलीया आदि . दूसरी नरक में गर्भज पक्षी-गीध आदि • तीसरी नरक में. सिंह आदि हिंसक जानवर • चोथी नरक में. पेटसे रेंगने वाले सांप आदि . पांचवी नरक मे. स्त्री-चक्री की पट्टराणी आदि • छठी नरक में. पुरूष व जलचारी तंदुलीया मत्स्य आदि . सातवी नरक में. ___ 1000 योजन वाले मत्स्य की आंख के उपर चावल जैसा छोटासा मत्स्य होता है, जो बडे मत्स्य के मुंह में आने वाले सभी मत्स्य को खाने की भावना में मरकर सातवी नरक में जाता है । 113 प दार्थ प्रदीप
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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