SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करना/इच्छा करना एसे विचारो से जीव पशु पंखी के अवतार में जाता है। 2. रौद्रध्यान - में हिंसा करूं ! में इसका खून करूं ! उसका माल उठातुं ! झूठ बोलकर मैं बच जाऊं ! धन की तिजोरी को विद्युत तार जोड दूं! सेफ डिपोजीट में सोना जमा करा दूं ! इत्यादि विचार करना रोद्रध्यान है । एसे विचार में सोया हुआ व्यक्ति नरक में शयन पाता है । 3. धर्मध्यान - भगवान की आज्ञा शिरमोर है, अहो ! इस संसार में कैसे कैसे दुःख का भागी बनना पड़ता है । मुझे जो दुःख मिला है वह सब मेरे कर्म का ही विपाक है, भगवान ने कितना स्पष्ट रुप से लोक का स्वरूप बताया एसे लोक के पदार्थों की विचारना करना धर्मध्यान है, जिससे मनुष्य व देव गति प्राप्त होती है । 4. शुक्लध्यान · ग्रंथ में दर्शाई हुई १२ भावना के द्वारा कोई भी एक पदार्थ में लयलीन बन जाना शुक्लध्यान है । इससे सिद्धगति हस्तगत होती है। । ज्योतिष चक्र का विशेष विज्ञान ।। नाम | विस्तार पृथ्वी से दूराई चन्द्र |56/61 यो. - 2940 माईल 880 यो. - 29.16.000 माईल सूर्य /48/61 यो. - 2520 " 0880 यो. - 25.60.000 '' ग्रह 12 कोश . 1600 " 1884 यो. - 28.28.800 '' नक्षत्र |1 कोश · 800 ' 1900 यो. - 28.80.000 " तारा |1/2 कोश · 400 " |790 यो. - 25.28000 " ० चंद्र की कला - चंद्र से 4 अंगुल नीचे नित्य राह कृष्ण रत्न का घुमता रहता है, लेकिन शुक्ल पक्ष में थोडा थोडा पीछे खीसकता है अतः चंद्र का भाग प्रगट होता रहता है । और कृष्ण पक्ष में आगे आता है अतः चंद्र का भाग ढकने लगता है । बस इस तरह चंद्रभाग का प्रगट होनाऔर आवृत होना ही चंद्र ही कला है । ० देव विमान का विस्तार - 850, 740 यो. एसा एक कदम देव की पदार्थ प्रदीप DO 112
SR No.022363
Book TitlePadarth Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnajyotvijay
PublisherRanjanvijay Jain Pustakalay
Publication Year132
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy