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________________ सागारधर्मामृत [ २७१ सकते ऐसे धर्मात्मा पुरुषोंको जितने झूठ हैं वे सब हिंसाके पर्याय होनेसे 'हिंसास्वरुप ही हैं क्योंकि जैसा प्रमत्तयोग हिंसामें है वैसा ही इन नीचे लिखे हुये असत्यों में होता है यही समझकर भोगोपभोगोंके साधन ऐसे पापसहित वचनोंके सिवाय सदलपन आदि पांच प्रकारके जो झूठ हैं उन सबका त्याग सदाकेलिये कर देना चाहिये। यहांपर इतना और समझ लेना चाहिये कि प्रमत्तयोगके विना जहां हेय उपादेयका उपदेश दिया जाता है वहांपर श्रोताको बुरा लगनेपर भी असत्य नहीं है । इसपरसे किसीने जो यह कहा है कि "सा मिथ्यापि न गीमिथ्या या गुर्वादिप्रसादिनी " अर्थात् "जो गुरु आदिको प्रसन्न करनेवाली वाणी है वह यदि मिथ्या (झूठ ) भी हो तथापि वह मिथ्या नहीं गिनी जाती" इसका भी ग्रहण कर लेना चाहिये क्योंकि उसमें भी प्रमत्तयोग नहीं है। १-असत्य भाषणको हिंसा इसप्रकार समझना चाहिये कि असत्य और हिंसा इन दोनोंमें दूसरेके चित्तको दुःख पहुंचानेवाले समान परिणाम होते हैं तथा प्रमत्तयोग अर्थात् कषायसहित मन वचन कायकी प्रवृत्ति भी दोनों भी समान है । जिसप्रकार रागद्वेषके अभाव होनेपर जीवके प्राणोंका घात होते हुये भी हिंसा नहीं गिनी जाती उसीप्रकार राग द्वेष आदि कषायोंके अभाव होनेपर झूठ वचन भी असत्य नहीं माने जाते । लिखा है हेतौ प्रमत्तयोगे निर्दिष्टे सकलवितथवचनानां । हेयानुष्ठानादे| रनुवदनं भवति नासत्यं ॥ सब प्रकारके झूठ बोलनेमें प्रमत्तयोग ही
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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