SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०) भावार्थ--राजामती विप्रलंभ नामका खंडकाव्य स्वोपज्ञ टीकासहित बनाया, पिताकी आज्ञासे अध्यात्मरहस्य नामका ग्रन्थ बनाया, जो शीघ्र ही समझनेमें आने योग्य, गंभीर और प्रारंभके योगियोंका प्यारा है और रत्नत्रय विधानक पूजा तथा माहात्म्यका वर्णन करनेवाला रत्नत्रयविधान नामका ग्रन्थ बनाया । संवत् १३०० के पश्चात् यदि पंडितवर्य दश ही..वर्ष जीवित रहे होंगे, तो अवश्य ही उनके बनाये हुए और भी बहुतसे ग्रन्थ होंगे। ग्रन्थरचना करना ही उन्होंने अपने जीवनका मुख्य कर्तव्य समझा था। आशाधरके बनाये हुए ग्रंथं बहुत ही अपूर्व हैं। उन सरीखे ग्रन्थकर्ता बहुत कम हुए हैं। उनका बनाया हुआ "सागारधर्मामृत' अन्थ बहुत ही अच्छा है । जिसने एकवार भी इस ग्रन्थका स्वाध्याय किया है, वह इसपर मुग्ध हो गया है। अनगारधर्मामृत और जिनयज्ञकल्प ग्रन्थ भी ऐसे ही अपूर्व हैं। अध्यात्मरहस्य कविवरने अपने पिताकी आज्ञासे बनाया। इससे मालूम पड़ता है कि उनके पिता सं० १२९६ के पीछे | भी कुछ काल तक जीवित थे। क्योंकि इस ग्रन्थका पहले दो ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें उल्लेख नहीं है; अनगारधर्मामृतकी टीकामें ही उल्लेख है और उसमें जो अधिक ग्रन्थ बतलाये गये हैं, वे १२९६ के पीछेके हैं।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy