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________________ सागारधर्मामृत [२३७ जीविका करना पहिलेसे ही छोड देना चाहिये, यही सबसे अच्छा पक्ष है । यदि कोई श्रावक ऐसी आजीविका नहीं छोड सकता हो तो दास दासियोंपर इतना बोझा लादना वा रखना चाहिये कि जितनेको वे स्वयं उठालें और वयं उतारले तथा उन्हें उचित समयपर छोड देना चाहिये । घोडा बैल आदि जानवरोंपर जितना भार वे ले जा सकें उससे कुछ कम ही रखना चाहिये, हल गाडी आदिमें लगे हुये पशुओंको खाने पीने और आराम लेनेकेलिये उचित समयपर छोड देना चाहिये । इसपकार यह अतिभारारोपण नामका चौथा अतिचार है । मुक्तिरोध-दूसरे जीवोंके खाने पीने के निरोध करने वा रोक देनेको भुक्तिरोध कहते हैं । वह भी यदि बुरे परिणामोंसे किया जाय तो बंधके समान अतिचार होता है । जिससमय किसी भी प्राणीको तीव्र भूख या प्यास लगती है यदि उससमय उसकी शांति करनेके लिये कुछ उपाय न किया जाय अथवा उसकी शांति न हो तो वह प्राणी तडफ तडफकर मर जाता है । इसलिये किसी भी जीवके खाने पीनेकी रुकावट कभी नहीं करना चाहिये । यदि किसीसे कुछ अपराध भी हुआ हो तो उससे बचनसे ही कहना चाहिये कि " आज तुझे भोजन नहीं दिया जायगा" परंतु भोजनके समय उसे अवश्य भोजन देना चाहिये । श्रावकोंको प्रत्येक दिन अपने भोजनके समय अपने आश्रित जीवोंको अथवा और भी किसी meaner
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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