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________________ प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन है। अतः वैराग्य-मार्ग सकल-चारित्र की अपेक्षा दुष्कर है 26 । उक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वैराग्य-मार्ग में कषाय बाधक है जिस पर विजय पाने के लिए क्षमादि दस धर्मों का सम्यक् पालन करना आवश्यक है । धर्म स्वरुप एवम् उसके प्रकार : प्रशमरति प्रकरण में धर्म स्वरुप एवम् उसके भेद पर विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है और बतलाया गया है कि धर्म-मार्ग पर चलने वाला मनुष्य वैराग्य-मार्गी हो सकता है। जबतक वह धर्म के पथ पर नहीं चलता है, तबतक वह अनादि संसार-परिभ्रमण के चक्क से छुटकारा नहीं पा सकता है। ग्रन्थकार ने धर्म के दो रुप बतलाये हैं - (1) आगम रुप (2) उत्तम क्षमादि दस लक्षण रुप। आगम रुप धर्म से मनुष्य स्व-पर का बोध करता है और अपनी अविराम साधना से मुक्ति लाभ करता है। उत्तम क्षमादि रुप धर्म से प्राणी इसी प्रकार संसार-सागर को पारकर मुक्ति प्राप्त करता है 281 प्रशमरति प्रकरण में धर्म के दस प्रकार बतलाये गये हैं जो क्रमशः निम्नवत् हैं29। क्षमा, मार्दव, आर्जव, शीव, संयम, त्याग, सत्य, तप, ब्रह्मचर्य और आकिन्चन्य । .. क्षमा धर्म : क्षमा धर्म उत्तम धर्म है। गालीगलोज और मार आदि को समभावपूर्वक सहना क्षमा है। अर्थात् कोथोत्पत्ति के निमित्त मिलने पर भी हृदय में क्रोध का उत्पन्न नहीं होना क्षमा धर्म - धर्म का मूल दया है, क्योंकि दया अहिंसा स्वरुप है और धर्म का लक्षण अहिंसा ही है। अतः धर्म का मूल दया है। परन्तु जो क्षमाशील नहीं है, वह प्राणियों पर दया नहीं कर सकता है क्योंकि क्रोधी मनुष्य को चेतन-अचेतन अथवा इस लोक-परलोक का कोई ध्यान नहीं रहता है। इस प्रकार जो क्षमा धर्म के पालन करने में सदा तत्पर है, वही दस लक्षण धर्म का पालन कर सकता है। अतः दस धर्मों में क्षमाधर्म सर्वोत्तम है 31 । मार्दव धर्म : ___ मद के कारणभूत मान कषाय को जीतना मार्दव धर्म है 32 । मद के आठ प्रकार बतलाये गये हैं33 - जाति, कुल, रुप, बल, लाभ, बुद्धि, प्रिये एवं श्रुत, जिनका विस्तार पूर्वक कथन प्रशनरति प्रकरण में निम्नवत् किया गया है:
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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