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________________ 55 'दूसरा अध्याय 120. वही, 14, का0 207, पृ० 145 121. वही, 14, का0 209 पृ० 146 122. वही, 14, का0 214 को टीका, पृ० 150 - 123. अवकाशदानोप कुद्ग गनम्। वही, 14, का0 215 पृ० 151 124. यथा वा व्योम द्रव्यं स्वमेय .......... शब्दः प्रसाद यति। प्रशमरति प्रकरण, 14, का 215 की हरिभद्रीय टीका, पृ० 151 | 125. जीव जीवाधार.......... एमेवाकाशमे। वही, 14, का0 213 की टीका, पृ० 149 126. प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 211, पृ० 148 127. वही, 14, का० 212 पृ० 148 128. कालं विनास्तिकाया -वही, 14, का0 214, पृ० 150 129. प्रशमरति प्रकरण, 11, का० 207, पृ० 145 130. कालद्रव्यमण्यनन्त समयमतीता नानतादि भेदेनेति। वही, का० 14, का0 214 की टीका, पृ० 150 131. वही, पृ० 150 132. मर्त्यलोकिकः कालः । वही, 14, का० 213, पृ० 148 133. वही, 14, का, 209, पृ० 146 134. परिणाम वर्तना विधिः परापरत्व गुण लक्षणः कालः वही, 14, का० 218 पृ० 123 135. प्रशमरति प्रकरण, 14, का० 218 की टीका, पृ० 153
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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