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________________ वक्तव्य प्रशमरति प्रकरण श्लोक-शैली में लिखी गई संस्कृत भाषा में निबद्ध पद्यात्मक रचना है, जिसका प्रतिपाद्य विषय मुनि - आचार है। प्रशमरति का अभिधार्थ आसक्ति से निवृत्ति है । संसारासक्ति से निवृत्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति ही मुनि का लक्ष्य होता हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्यक् दर्शन - ज्ञान - चारित्ररुपी त्रिरत्न का विधान है। त्रिरत्न की अवस्थाओं में अन्तर्निहित सिद्धान्तों का विस्तृत विवेचन जिस प्रकार तत्वार्थसूत्र में सूत्र - शैली में प्रणीत है, उसी प्रकार वह प्रशमरति प्रकरण में श्लोकबद्ध शैली में ग्रथित है। यह ध्यातव्य है कि तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थभाष्य तथा प्रशमरति प्रकरण एक ही आगमिक परम्परा के एक ही लेखक वाचक उमास्वाति द्वारा आनुपूर्व क्रम में रचित आगम-ग्रन्थ माने गये हैं । प्रस्तुत कृति में विदुषी लेखिका ने प्रशमरति प्रकरण ग्रन्थ में प्रतिपादित जैन तत्त्वज्ञान एवं आचार-विषयक दार्शनिक सिद्धान्तों का विश्लेषणात्मक अनुशीलन उपस्थित कर इस ग्रन्थ की दार्शनिक उपादेयता को रेखांकित किया है । आशा है, जैन तत्त्व के जिज्ञासु पाठक वर्ग इससे लाभान्वित होंगे। बासोकुण्ड, मुजफ्फरपुर ११ अक्टूबर, १९९७ ई० डॉ० युगल किशोर मिश्र सम्पादन- प्रमुख
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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