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________________ प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन 26 संवर, निर्जरा, बंध एवं मोक्ष जबकि अन्य शास्त्रों मे तत्व की संख्या सात ही बतलाई गई है, क्योंकि पुण्य एवं पाप का अन्तर्भाव बंध तत्व में कर लिया गया है। परन्तु यहाँ पुण्य एवं पाप कर्मों के भेद बतलाने के लिए उनको पृथक ग्रहण किया गया है । इसलिए तत्व 9 (नौ) भेद बतलाये गये हैं। जिनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है: १. जीव तत्व : जीव एक प्रमुख तत्व है। जीव प्राण को धारण करता है । प्राण दो प्रकार के होते हैं द्रव्य प्राण और भाव प्राण । पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, श्वासोच्छवास और आयु- ये दस द्रव्य प्राण हैं तथा ज्ञानोपयोग एवम् दर्शनोपयोग भाव प्राण हैं। एक जीव में कम से कम चार प्राण ( स्पर्शेन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छवास एवं आयु) होते हैं । प्रशमरति प्रकरण में जीव की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जो जीव द्रव्य और भाव प्राण से त्रिकाल में जीवित रहे, वह जीव है । इसमें भाव प्राण जीव से अभिन्न है तथा आभ्यन्तर एवं अविनाशी होती है । भाव प्राण को शुद्ध प्राण भी कहा जाता है । 1 जीव का सामान्य लक्षण उपयोग है 7 । उपयोग आत्मा के चेतना का परिणाम है । जिसमें यह गुण पाया जाता है, वह जीव है और जिसमें नहीं पाया जाता है । (क) ज्ञानोपयोग (ख) दर्शनोपयोग । ज्ञानोपयोग के आठ भेद हैं 8 मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान, केवलज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान । उक्त पाँच ज्ञान और तीन अज्ञान - आठ प्रकार के ज्ञानोपयोग साकार है । दर्शनोपयोग के चार भेद हैं, ५- चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवल दर्शन । चक्षुदर्शनादि का विषय अनाकार है, क्योंकि दर्शनोपयोग निर्विकल्पक है 10 | जीव के भावः जीव अपने स्वभाव में परिणमन करता है । जीव की परिणति विशेष को भाव कहा गया है। जीव के पाँच भाव बतलाये गये हैं- औदयिक, पारिणामिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक 11 । उक्त जीव के पाँच भावों का विशेष उल्लेख निम्न प्रकार किया गया है । औदयिकभाव : कर्मों के उदय से जो भाव होता है, उसे औदयिक भाव कहते हैं 12। इसके इक्कीस भेद हैं- देव, मनुष्य, तिर्यंच एवं नरक रूपी चार गतियाँ, क्रोध, मान, माया, लोभ, चार कषाय, स्त्री, पुरुष और नपुंसक लिंग, एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयत, एक असिद्धत्व और कृष्ण नील कपोत तेजस पद्म - शुक्ल - छह लेश्याएँ । ये सभी भाव कर्म के उदय से होते हैं 13
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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