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________________ 19 प्रथम अध्याय (ग) वैराग्य विषयक साहित्य में प्रशमरति प्रकरण का स्थान : भारतीय धर्मदर्शन एवं संस्कृति मोक्षमूलक होने के कारण यहाँ के चिन्तकों ने विभिन्न कालों में विभिन्न भाषाओं में वैराग्य विषयक साहित्य का सृजन किया है। जैन धर्म-दर्शन विशेषकर निवृत्तिमूलक दर्शन है। इसलिए जैनाचार्यों ने वैराग्य विषयक विपुल साहित्य लिखकर भारतीय संस्कृति को संवर्द्धित किया है। वैराग्य के क्षेत्र में जैन दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि समस्त तीर्थंकरों ने वैराग्यमूलक उपदेश दिये और उनके गणथरों नेतद्विषयक रचनाओं का, जिन्हें आगम के नाम से जाना जाता है, सृजन किया है। - उत्तरवर्ती आचार्यों ने आगमों का आधार बनाकर अनेक छोटी-बड़ी रचनाएं की है, जिन्हें हम आगमेतर जैन साहित्य कह सकते हैं। संक्षेप में यहां पर वैराग्य विषयक साहित्य-प्रस्तुत है। अर्द्धमागधी वैराग्य विषयक आगम साहित्य : ___ अर्द्धमागधी आगम साहित्य में आचारांग वैराग्य विषयक ग्रन्थ है। इसमें जीवों को संसार की अनित्यता आदि का बोध कराकर मोक्ष की ओर उन्मुख होने के लिए प्रेरित किया गया है। उत्तराध्ययन एवं दशवकालिक भी इसी कोटि की रचना है। शौरसेनी प्राकृत भाषा में रचित वैराग्य विषयक साहित्य : शौरसेनी प्राकृत भाषा में निबद्ध षट्खंडागम, कषाय पाहुड, महाबंध में कर्म संबंधी सूक्ष्म विवेचन करके जीवों को वैराग्य की ओर उन्मुख होने के लिए उत्प्रेरित किया है। समयसार पूर्ण आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इसमें आत्मा के शुद्ध स्वरुप का विवेचन किया गया है ताकि संसारी जीव मोक्ष के मार्ग पर अग्रसारित हो सके। पंचास्तिकाय भी वैराग्य विषयक ग्रन्थ है। इसमें स्वयं आचार्य कुन्दुकुन्द ने कहा है कि इस ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य और पंचास्तिकाय के अध्ययन का फल मोक्ष-प्राप्ति है। 57 इसमें पाँच अस्तिकायों के स्वरुप विवेचन कर यह बतलाया गया है कि एक मात्र शुद्ध आत्मा ही अपनी है और इससे भिन्न अन्य है। इसलिए मोक्षप्राप्ति के लिए अन्य द्रव्यों के प्रति राग भाव को छोड़ना आवश्यक है। प्रवचनसार नामक वैराग्य विषयक ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य भव्य जीवो नमक में वैराग्य (वीतराग) भाव उत्पन्न करना है। इसमें आत्मा और अन्य द्रव्यों का स्वरुप विवेचन करने के • पश्चात् शुद्ध उपयोग द्वारा शुद्धात्मा की प्राप्ति के लिए प्रेरणा दी गई है। इसी तरह से नियमसार रयणसार और अष्टपाहुड़ वैराग्य विषयक साहित्य हैं जिसकी रचना आचार्य कुन्दकुन्द ने की है।
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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