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________________ 14 प्रशमरति प्रकरण का समालोचनात्मक अध्ययन क्रमशः इक्कीस, तीन, दौ, नौ और अट्ठारह भेदों का कथन करके बतलाया गया है कि उक्त भावों से आत्मा स्थान, गति, इन्द्रिय, सम्पत्ति सुख और दुःख को प्राप्त करती है। (196-98) आत्मा की आठ मार्गणाओं का कथन कर बतलाया गया है कि जीव-अजीव के द्रव्यात्मा,सकषाय जीवों के कषायात्मा होती है।199-200 इसके साथ ही सम्यग्दृष्टि के ज्ञानात्मा, सब जीवों के दर्शनात्मा, व्रतियों के चारित्रात्मा और समस्त संसारियों के वीर्यात्मा होती है (201)। इस प्रकार आगे नय विशेषानुसार सब द्रव्यों में द्रव्यात्मा का व्यवहार कर द्रव्य, क्षेत्रादि की अपेक्षा आत्मविचार करने का निर्देश करके अर्पित-अनर्पित की अपेक्षा से वस्तु के सत् और असत्-दो भेदों का उल्लेख कर उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से युक्त को सत् और इसके विपरीत को असत् माना गया है और बतलाया गया है कि वस्तु निकाल स्वरुप की अपेक्षा नित्य है (202-206)42। 14. षड् द्रव्याधिकार : - इस ग्रन्थ का चौदहवाँ अधिकार षड़ द्रव्याधिकार है। इसमें अजीव द्रव्य के धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, काल का वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि पुद्गल को छोड़कर शेष द्रव्य अरुपी होते हैं (207)। पुदगल के अणु और स्कन्ध-दो भेद हैं (208)। धर्म, अधर्म, आकाश और काल के परिणामिक, पुद्गल के औदयिक-पारिणामिक तथा जीव के समस्त भाव होते हैं (209)। इस प्रकार छह द्रव्यों का समूह लोक है और लोक का आकार पुल्य के समान है (210) । इस लोक के अथोलोक, मध्यलोक तथा उर्ध्वलोक - तीन भेद हैं और उक्त तीन लोक के क्रमशः सात, अनेक एवं पन्द्रह भेद हैं। 211-12 में आकाश लोक-अलोक में व्याप्त बताया गया है। काल का व्यवहार मनुष्य लोक में होता है। शेष चार द्रव्य लोकव्यापी है। 213 धर्म, अथर्म, आकाश द्रव्य एक और शेष तीन द्रव्य अनन्त बताया गया है। काल को छोड़कर शेष द्रव्य अस्तिकाय तथा जीव को छोड़कर सभी द्रव्य अकर्ता हैं। 214 आगे गतित्युपकार धर्म, स्थित्युपकार अधर्म एवं समस्त द्रव्य को अवकाश देने वाला आकाश द्रव्य के कार्यों कथनकर पुद्गल, काल एवं जीव के उपकार का विस्तृत वर्णन किया गया है। (215-218) । इस प्रकार इसमें पुण्य, पाप, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, बंध एवं मोक्ष तत्व का वर्णन कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान के क्रमशः भेदों का कथन किया गया है (219-227) 43 । 15. चारित्राधिकार : __इस ग्रन्थ का पन्द्रहवाँ अधिकार चारित्राधिकार है। इसमें सम्यक् चारित्र के पाँच भेदों का उल्लेख कर सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूपी सम्पदा को मोक्ष का साधन माना गया है और बताया गया है कि उनमें से एक के भी अभाव में मोक्ष-सिद्धि संभव नहीं हैं, क्योंकि सम्यग्दर्शन और सम्यक्ज्ञान के होने पर ही सम्यक् चारित्र होता है (228-231)। और सम्यक्त्व अराधक साधु को है मोक्ष की प्राप्ति होती है। (232-233) अतः ऐसे अराधक साधु को जिनेन्द्रभक्ति आदि में यत्न कर नियमपूर्वक अत्यन्त परोक्ष प्रशम सुख प्राप्त करना चाहिए (234-237) क्योंकि, शास्त्रविहित विधि के पालक साधुओं को इसी लोक में मोक्ष
SR No.022360
Book TitlePrashamrati Prakaran Ka Samalochanatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManjubala
PublisherPrakrit Jain Shastra aur Ahimsa Shodh Samthan
Publication Year1997
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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