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________________ ३० अयोगव्यवच्छेदः लेनेकी शक्ति नही है ? क्या ईश्वर कृष्णावतार लेके, गोपियोंके साथ क्रीडा रासविलास भोगविलासादि नही कर सक्ता है? क्या शंकर बन करके, पार्वती के साथ विविध प्रकारके भोगविलास और अनेकतरेंकी शिवकी लीला नही कर सक्ता है? क्या ब्रह्मा बनके चारों वेदोंका उपदेश, और निजपुत्रीसें सहस्र वर्षतक भोगविलास नही कर सक्ता है? क्या मत्स्यवराहादि चौवीस अवतार धारके अपने मनधारे कृत्य नही कर सकता है? क्या ईश्वर नाचना, गाना, रोना, पीटना, चोरी, यारी, निर्लज्जतादि नही कर सकता है? क्या लिंगकी वृद्धि करके, तीन लोकांतोंसेंभी परे नहीं पहुंचाया सक्ता है ? इत्यादि अनेक कृत्य जे अच्छे पुरुष नही कर सक्ते हैं, वे सर्व कृत्य ईश्वर कर सक्ता है? पूर्वपक्षः- ऐसे ऐसे पूर्वोक्त सर्वकृत्य ईश्वर नही कर सक्ता है, क्योंकि, ऐसी बुरी शक्तियां ईश्वरमें है तो सही, परंतु ईश्वर करता नहीं है। उत्तरपक्षः- तुम्हारे दयानंदस्वामी तो लिखते हैं कि, ईश्वरकी सर्वशक्तियां सफल होनी चाहिये; जेकर पूर्वोक्त सर्वकृत्य ईश्वर न करेगा तो, तिसकी सर्व शक्तियां सफल कैसे होवेंगी? पूर्वपक्षः- ईश्वरमें ऐसी२. पूर्वोक्त अयोग्य शक्तियां नही है। उत्तरपक्षः- तब तो वदतोव्याघात हुआ, अर्थात् सर्वशक्तिमान् ईश्वर सिद्ध नही हुआ, तो फेर, देह मुखादि उपकरणरहित सर्वव्यापक ईश्वर, प्रमाणद्वारा वेदोंका उपदेशक कैसें सिद्ध होवेगा? अपितु कदापि नही होवेगा. क्योंकि, उपदेश जो है सो देहवालेका कर्म है, इस वास्ते एक ईश्वरमें पूर्वोक्त देहरहित होना और उपदेशकभी होना, ये परस्पर विरोधि धर्म नही घट सक्ते हैं, इसवास्ते परवादीयोंका कथन अज्ञानविजूंभित है ॥ १७ ॥
SR No.022359
Book TitleAyogvyavacched Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypradyumnasuri
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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