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________________ भ० सा० ॥ १२ ॥ 6222 | देशजातिकुलाचारैः श्रेष्ठो दक्षः सुलक्षणः त्यागी वाग्मी शुचिः शुद्धसम्यक्त्वःसद्वतो युवा ॥ १११ | श्रावकाध्ययनज्योतिर्वास्तुशास्त्रपुराणंवित । निश्चयव्यवहारज्ञः प्रतिष्ठा विधिवित्प्रभुः ॥ ११२ ॥ | विनीतः सुभगो मंदकषायो विजितेंद्रियः । जिनेज्यादिक्रियानिष्ठो भूरि सत्त्वार्थबांधवः ।। ११३ ।। शांत देवताकी प्रतिष्ठा में चंद्रप्राण ( वांया नाकका स्वर ) लेना और क्रूर देवताकी प्रतिष्ठामें | सूर्यप्राण ( सीधा नाकका स्वर ) लेना । चंद्रप्राण और सूर्यप्राणको ही वामनाडी, दक्षिण नाडी कहते हैं ॥ ११० ॥ इसप्रकार प्रतिष्ठायोग्यका लक्षण कहा। अब प्रतिष्ठा करनेवाले प्रतिष्ठा|चार्यका लक्षण कहते हैं; -प्रतिष्ठा करनेवालेको सौधर्म इंद्र समझना चाहिये । वह कैसा होवे । यह कहते हैं । जिन धर्मकी प्रभावनावाले देशमें उत्पन्न हुआ हो. मातापक्ष और पितापक्ष दोनों जिसके उत्तम हों, शास्त्राचार लोकाचार दोनोंको पालने वाला हो, दूसरे का अंतरंग जाननेमें चतुर हो, सामुद्रिक शास्त्र में कहे गये शरीर के शुभ चिन्होंवाला हो, दानी हो । मिष्ट बोलनेवाला, मन वचन कायसे शुद्ध. निर्दोष सम्यक्त्ववाला. निर्दोष पांच अणुव्रत पालनेवाला और सोलह वर्ष से अधिक उमरवाला जवान हो ॥ १११ ॥ श्रावकाचार, चंद्रप्रज्ञप्ति आदि ज्योतिषशास्त्र, स्थलगतचूलिका में कहेगये महल आदि बनानेके विधानवाले शिल्पिशास्त्र और पुराण (इतिहास) शास्त्रोंका जाननेवाला हो, निश्चयनय व्यवहार इन दोनों को जाननेवाला, प्रतिष्ठा विधिका जाननेवाला और तेजस्वी हो ॥ ११२ ॥ आयु तप विद्या कुलाचारादिसे अधिक जनोंकी विनय करनेवाला, सबको १ लोको देशः पुरं राज्यं तीर्थं दानं तपोद्वयं । पुराणस्याष्टधाख्येयं गतयः फलमित्यपि ॥ भा०डी० अ० १ ॥ १२ ॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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