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________________ प्र०सा० ॥१३६॥ crorre एनं सम्यगधीत्य ये गुरुमुखानुध्वा तदर्थं क्रिया निर्मास्यति सुमेधसो बुधनताः प्राप्स्यति ते निर्वृत्तिम् ।। ६५ ।। इत्याशाधरविरचिते प्रतिष्ठासारोद्धारे जिनयज्ञकल्पापरनाम्नि सिद्धादिप्रतिष्ठा विधानयो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥ | विधिको कहनेवाले जिनयज्ञकल्प द्वितीय नामवाले प्रतिष्ठासारोद्धार ग्रंथको "C मुझ आशाधरने " कल्याण होनेकेलिये किया है। जो भव्यजीव गुरुके मुखसे इसको पढकर इसकी क्रियायें करेंगे वे बुद्धिमान देवोंसे पूजित हुए परंपरासे मोक्षको पायेंगे ॥ ६५ ॥ इसप्रकार पं० आशाधर विरचित जिनयज्ञकल्प दूसरे नामवाले प्रतिष्ठासारोद्धार में सिद्ध आदिकी मूर्तिप्रतिष्ठाको कहनेवाला छठा अध्याय समाप्त हुआ ॥ ६ ॥ भा०टी० अ० ६ ॥१३६॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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