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________________ Toate ॥११६॥ ओं “ सत्तक्खरसक्कार अरहताणं णमोत्ति भावेण । जो कुणइ अणण्णमणो सो गच्छइ ।। उत्तमं ठाणं " ॥ कंकणमोक्षणं । ॐ "केवलणाणदिवायरकिरणकलावप्पणासियण्णाणो । णव केव- भाण्टी० ललझुग्गमसुजणियपरमप्पववएसो" असहायणाणदंसणसहिओ इदि केवली हु जोएण। जुत्तोत्ति सजोगि-2 अ०४ जिणो अणाइणिहणारिसे उत्तो" । इत्येषोऽर्हत्साक्षादत्रावतीर्णो विश्वं पात्विति स्वाहा। प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । अर्हद्देवसाक्षात्करणविधानम् । ओं "खवियघणघाइकम्मा चउतीसातिसयपंचकल्लाणा । अटवरपाडिहेरा अरहंता मंगलं मज्झ" भूयासुरिति स्वाहा ॥ परमोत्सवेन महाघमवतारयेत् ।। सिद्धश्रुतचरित्रर्षिशांतिभक्तिभिरन्विताः। केवलज्ञानकल्याणक्रियां कुर्वतु याजकाः ॥२२३|| । इति केवलज्ञानकल्याणकस्थापनविधानम् । न्यस्यनिर्वाणकल्याणं सूत्रोक्तविधिना ततः। सिद्धश्रुतचरित्रर्षिशिवशांतीन स्तुवंतु ते॥२२४॥ इति निर्वाणकल्याणस्थापनम् । करे ॥ २२२॥ यह अर्हत प्रभुका साक्षात्करण हुआ।" ओं" इत्यादि स्वाहातक बोलकर बहुत उच्छवके साथ महार्घ चढावे। इसप्रकार प्रतिष्ठा करनेवाले सिद्ध श्रुत चारित्र ऋषि शांति भक्तियों सहित केवलज्ञानकल्याणकी क्रिया करें।। २२३ ॥ इसतरह केवलज्ञानकल्याणकी स्थापना विधि हुई। उसके बाद वे इंद्र शास्त्रकथित विधिसे निर्वाण कल्याणका स्थापन करके सिद्ध श्रुत चारित्र ऋषि शिव शांति स्तुतिका पाठ करें॥२२४॥ जिसतरह ११६॥
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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