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________________ - पुण्यविपाकसंपादितसौराज्यसंपदुपभोगस्थापनाय कुंकुमारुणितपुष्पाणि प्रतिमोपरि विकिरेत् । एवं वैषयिकैः सुखैः सुरनराधीशामपि पार्थितैः शश्वत्तीतमनाः सुराधिपतृपैः राज्ञार्थिभिः सेवितः । कालैकक्षपणीयमोहमहिमाव्याधृतिसंसूचक प्रेक्षातंकिततीर्थकृच्छिवरतोप्यास्ते द्वितीयाश्रमे ॥ ९८॥ देवोपनीतभोगोपभोगानुभवनाय प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् । इति जन्मकल्याणस्थापना ॥ २॥ अथ निष्क्रमणकल्याणं । प्राप्ते सामज्वरवदणुता वृत्तमोहे विवेक-- ज्योतिष्युद्यत्यथ किमपि तत्कारणं वीक्ष्य मंक्षु । निर्विष्णोर्हत्समरससुधास्वादनौकः सहैत्य प्रीत्यानत्य सततदुपर्धानम्यनंदत्सुरींन ॥ ९९ ॥ लिये केशरसे रंगे हुए पुष्पोंको प्रतिमाके ऊपर वखेरै ॥ ९७॥ “ एवं " इत्यादि श्लोक बोलकर देवोंसे लाये गये भोग उपभोगोंका अनुभव दिखानेके लिये प्रतिमाके ऊपर पुष्पोंको शाक्षेपण करे ॥ ९८॥ इस प्रकार जन्मकल्याणकी स्थापना हुई ॥ (२)॥अब तपकल्याणकका वर्णन करते हैं । " प्राप्ते " इत्यादि श्लोक बोलकर शमसुखके एक स्वादी होनेकी स्थापनाके
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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