SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्र०सा० देहल्यब्जशिलापृष्टे जयाद्यष्टदलांबुजम् । संपूज्याप्लवयेच्चाहत्सृतांभस्तीर्थवार्घटैः ॥ ४०॥|||भा०टी० अथ किंचिदपर्याप्त प्रासादे दक्षुणक्षणे । कारापकादिक्षेमार्थ पुरुषं संप्रवेशयेत् ॥४१॥ या अ०१ शुकनासोर्ध्वपर्यंतकेदिकाधस्तलांतरे । गर्भपवरकं कृत्वा वेदिकां तत्र विन्यसेत् ॥ ४२॥ मध्ये ताम्रमयं कुंभ वस्त्रयुग्मेन वेष्टितम् । क्षीराज्यशर्करापूर्ण गंधपुष्पाक्षतार्चितम् ।। ४३ ॥ स्थिरं संस्थाप्य तन्मध्ये प्रक्षिपेद्रत्नपंचकम् । सर्वोषधीश्च धान्यानि पारदं लोहपंचकम्॥४४॥ सौवर्ण वाथवा रौप्यं कारयित्वा नरं ततःासंस्नाप्याज्यादिसद्रव्यैःसमभ्यया॑क्षतादिभिः४५|| आठ पत्रोंवाला कमल पूजकर अहंत देवके अभिषेकके जलसे उन शिलाओंको धोना चाहिये ॥ ३९ ॥ ४० ॥ ६ सप्रकार वेदीबंध आदि तीनोंकी प्रतिष्ठाकी विधि जानना ॥ अब पुतलेके प्रवेश करनेकी विधि कहते हैं, उसके बाद अपने संपूर्ण लक्षणोंसे युक्त जिनमंदिर तयार होनेमें कुछ रह जावे तभीसे शिल्पी वगैरःके कल्याणकेलिये मनुष्याकार पुत लेका प्रवेश करे ॥४१॥ उसकी विधि इस प्रकार है कि तोतेका समान नाकवाली पद्मशिलाके ऊपरके भाग और वेदीके निचले भोगके बीचमें रहनेका स्थान (कमरा) वनाके उसमें प्रतिमा विराजमान होनेकी वेदीको रखे ॥४२॥उसके बीच में तांबेका घडा दो वस्त्रोंसे ढका हुआ रक्खे | उस घड़में दूध घी शक्कर भरदे और चंदन पुष्प अक्षतसे पूजन करे।उस घडेको स्थिर रखकर उसमें , पांच तरहके रत्न, सर्व औषधी सब अनाज पारा लोहा आदि पांच धातुएं भरदे ॥४शा अनंतर सोना अथवा चांदीका मनुष्याकार पुतला वनवाके उसे घी आदि उत्तम द्रव्योंसे स्नान II AAGउन्न्
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy