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________________ लन्डन्सलर आवाहनादिपुरस्सरप्रत्यकपूजाप्रतिज्ञानाय पुष्पाक्षतं क्षिपेत् । जये जयाये विजये विजैनि जैने जितेपराजितस्मिन् । जंभेवमोहनस्ति भाः स्तंभिनि रक्ष रक्षास्मान् ॥ २१६ ॥ स्वोपग्रहाय पत्रेषु पुष्पाक्षतानि क्षिपेत् । अथ प्रत्येकपूजा । इहाईतो विश्वजनीनवृत्तेः कृतौ कृतारातिजये जये त्वाम् । सद्धपुष्पाक्षतदीपधूपफलादिसंपादनया घिनोमि ॥ २१७ ।। ओं ही जये देवि आगच्छागच्छ इदं.... ............................ । जिनाधिराजे विजयैकविद्ये जगद्विजेतुः कुसुमायुधस्य । विजेतरि स्फारितभूरिभक्ति त्वामत्र यज्ञे विजये यजेहम् ।। २१८॥ ओं ही विजये देवि............................................ ... । क्पाल, द्वारपाल, और यक्षोंको पूजे ॥ अब जया आदि देवताओंकी पूजा कहते हैं । जया इत्यादि श्लोक बोलकर आवाहनादिपूर्वक हर एककी पूजा करनेकी प्रतिज्ञाके लिये पुष्पअक्षतोंको क्षेपण करे॥२१५॥ “जये” इत्यादि श्लोक बोलकर अपने उपकारके लिये पत्रोंपर पुष्प अक्षतको क्षेपण करे ॥ २१६ ॥ अब प्रत्येककी पूजा कहते हैं। "इहा" इत्यादि तथा “ओं ह्रीं" बोलकर जया देवीको जलादि आठ द्रव्य चढावे ॥ २१७ ॥ “जिना" इत्यादि तथा "ओं ह्रीं” बोलकर विजयाको अर्घ चढावे ॥२१८॥ "जग" इत्यादि तथा “ओं ह्रीं"
SR No.022357
Book TitlePratishtha Saroddhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Manharlal Pandit
PublisherJain Granth Uddharak Karyalay
Publication Year1918
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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